साहित्य चक्र

01 January 2021

स्व:अस्तित्व




अगर प्रेम मिल जाये तो रहना खामोश
अगर साथ मिल जाये तो रहना खामोश
कोई धोखे से जब चुरा ले दिल का सुकूं
तो मुस्कान के साथ रह जाना खामोश

अगर हो धोखा ग़र मानवता के साथ
दांव पर हो ज़मीर और साधन तमाम
कोई धोखे से जब खोले घर के राज़
तो कसम है तुझे न रह जाना खामोश

अगर मिल जाये कोई बिखरा इंसान
लगा के गले से समय सौंप देना उसे
कोई धोखे से कराये तुम्हारा शिकार 
तो मेमना बनकर न हो जाना खामोश 

अगर मिले पद पैसे रूतबे का लालच
मिटानी पड़े तुम्हें तुम्हारी शख्सियत 
नीति, नियम, प्रमाणिकता खोने लगे 
तो अंधभक्त बनकर न हो जाना खामोश 

लेने पड़ेगें तुम्हें तुम्हारे निर्णय 
बनाने पड़ेगें तुम्हें स्वनिर्मित मार्ग
हिमालय की तरह होना पड़ेगा अटल
प्रकृति की तरह करना होगा न्याय 

खुद के लिए, हाँ स्व:अस्तित्व के लिए! 

 
                                           आकांक्षा सक्सेना 

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