क्योंकि कहीं ना कहीं पुरषों क़ो लगता है कि औरतें इनसे कमतर हैं, और जब यही औरतें इनको चुनौती देती हैं तब ये बौखला जाते हैं और जब आप किसी औरत से हार जाते हैं तब आप बौखलाहट में अपना गुस्सा या विरोध दिखाने के लिए औरत को गाली देते हैं, उसे “रंडी” कहते हैं! मगर “रंडी” शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है ना ही आपका गुस्सा, ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी “घटिया मानसिकता”
रंडी-वेश्या कहकर नारी क़ो अपमानित करने की लालसा रखने वाले ऐ कमअक्लों, एक पेशे को गाली बना देने की तुम्हारी फूहड़ कोशिश से तो उन पर कोई गाज़ गिरी नहीं। पर अपनी चिल्ला-पों और पोथी-लिखाई से छानकर क्या तुमने इतनी सदियों में कोई शब्द, कोई नाम ढूंढ़ निकाला?
अब बात करती हूँ कुछ पुरषों के मर्दानगी की औकात की:-
“नारी नरक का द्वार है” या स्त्री के लिए सम्मानसूचक शब्द समाज ने दिये – “वैश्या, रण्डी ,छिनाल ,कलंकिनी” और भी न जाने क्या क्या।
एक सवाल कुछ पुरुष जाति से:-
अपराधी अगर स्त्री-पुरुष दोनों हैं तो स्त्री को नारी निकेतन और पुरुष को छुट्टा आजादी क्यों? मैने तो यही सुना था कि पुरुष वह जो स्त्री की आंखों में आंसू न आने दे। ऐसा पुरुष कहां पाया जाता है मुझे उसका पता चाहिए। ऐसे विज्ञापन देख एक सवाल तो रोज उठता है कि जब पुरुष प्रधान समाज में ऐसे विज्ञापनों की भरमार होगी तो पता नहीं अभी कितनी अरुणाएं, कितनी निर्भयाएं, कितनी ही मासूम बच्चियां आबरू लुटा संसार से विदा होंगी।
अरुंधती रॉय ने कश्मीर पे कुछ कहा, तो भक्तों ने उसको “रंडी” कहना शुरू कर दिया!
– शहला राशिद ने भाजपा के विरोध में लिखा तो उसको भी “रंडी” शब्द से अलंकृत किया गया!
– साल भर पहले की बात है मारिया शारापोवा को “रंडी” सिर्फ़ इसलिए कहा गया क्योंकि वह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती थीं!
– सोना महापात्रा “रंडी” हो गयीं क्योंकि वो सलमान ख़ान की रिहाई सही नहीं मानती थीं!
– बरखा दत्त से लेकर निधि राजदान तक वे सभी औरतें जो आपकी “अंध-भक्ति” का विरोध करती हैं, वो “रंडी” हैं!
– सानिया मिर्ज़ा से लेकर करीना कपूर तक हर वो सेलेब्रिटी “रंडी” है जिसके प्रेम ने मुल्क और मज़हब की दकियानूसी दीवारों को लांघा!
– वह चौदह साल की लड़की भी उस दिन आपके लिए “रंडी” हो जाती है जिस दिन वह आपका प्रपोज़ल ठुकरा देती है और अगर कोई लड़की आपके प्रेम जाल में फंस गयी तो वह भी ब्रेक-अप के बाद “रंडी” हो जाती है!
– जीन्स पहनने वाली लड़की से लेकर साड़ी पहनने वाली महिला तक सबका चरित्र आपने सिर्फ़ “रंडी” शब्द से परिभाषित किया है!
काश कोई इस समाज को समझा सके कि पुरुष का पौरुष संयम और सदाचार से बढ़ता है। तुम उसे रंडी, वेश्या कहते हो, उनका बलात्कार करते हो, उनके शरीर को गंदी निगाहों से देखते हो, उनके पेट में ही मार देते हो, सरेआम उनके कपड़े फाड़ते हो… मत भूलना ये अस्तित्व उन्ही से मयस्सर है तुम्हें।
क्या कभी देखा है किसी रंडी को तुम्हारे घर पर कुंडी खड़का कर स्नेहिल निमंत्रण देते हुए?? नहीं न!!! ….वो तुम नीच नामर्द ही होते हो, जो उस रंडी के दरबार में स्वर्ग तलाशने जाते हो !
नूपुर श्येन
No comments:
Post a Comment