साहित्य चक्र

04 July 2020

नमस्ते से आंखें खुशी



आज फिर मेरे चेहरे पर उदासी छाई है,
सैकण्ड चांस फिर भी स्कूल से बिछड़ने की घड़ी आई है,
नन्हे मुन्ने बच्चों से घुल-मिले इस तरह की,
आज फिर आंखों ने आंसू की नदियां बहायी है।

पांच साल तक जहां प्रार्थना की अब वहां महिना भर कराई है,
जहां बैठे शरारत, शिकायत की अब सुन हुई भरपाई हैं,
प्रहलाद सर के नमस्ते से आंखें खुशी से नमनमाई है,
बच्चों के संग कबड्डी खेल यहां बाटे-दाल खाई है।।

फुसी मैम के आदर से चैहरे पर मुस्कराहट आई है,
सर के बराबर कुर्सी पर बैठने की हिम्मत यहां जुटाई है,
रसोइया सेनजी के हाथ से बनी फिर चावल दाल खाई है,
ईन्टर्नशिप के इन दिनों सारे बचपन की याद आई हैं।

अनुभव के इस दौर में बिछड़ने की घबराहट छायी हैं,
कभी यहां सर से बिछड़े थे आज बच्चों से जुदाई है,
लिखें देऊ जांगिड़ आज हमनें मंजिल की पहली सीढ़ी पायी हैं,
प्राथमिक विद्यालय भादूओं की ढाणी से आज फिर मेरी विदाई हैं।

                                                    देऊ जांगिड़


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