नव जीवन पाया माता से, अरु पितु से पहचान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।
माँ दुलार की नदी पिता के, सँग आमोद-प्रमोद,
संस्कार का दीप जलाया, हुआ सत्य का बोध ।
क्षमा,दया के बीज भरे उर, संघर्षों की खाद,
नैतिक गुण के पुष्प खिलाकर, शूल हरे अवसाद ।
प्रश्न सभी हल करते धर कर, अधरों पर मुस्कान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।। १।।
व्यथा छुपाए रहे बनाया, खुशियों का हकदार ,
अपनी गोद बिठाकर अतुलित, रहे लुटाते प्यार ।
बिगड़े नहीं अकारण हम पर, नहीं दिखाते रोष ,
कार्य,कुशल,कर्तव्य परायण, भरा हृदय में जोश ।
बनकर गुरु,अरु मित्र दिया है, जीवन का संज्ञान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।२।।
आशीषों की छांव तले, भरते जीवन मे रंग ,
जो तत्पर परिवार हेतु हो, वो अभिन्न हैं अंग ।
रक्त शिराओं में पितु का है, थाह,अथाह अनन्त ,
पिता समक्ष नई इच्छाओं ,का कब होता अंत ।
मात-पिता हैं रूप ईश का, दो हृद में स्थान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।३।।
रीना गोयल
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