साहित्य चक्र

18 July 2020

जाने दो....



नदिया   हूं ,  बह   जाने   दो ,
कल - कल  करके आने दो ।
अविरल - प्रवाह बह जाने दो,
मुझे लहरों में  मुस्कुराने  दो।।
नदिया हूं, बह जाने दो .......

जग की सब प्यास बुझाने दो,
सबका  तर्पण   करवाने  दो ।
मुझे जीवन  अमृत  बनाने दो,
सबके अवसाद धुल जाने दो।।
नदिया हूं, बह जाने दो .......

मिलकर "श्रेष्ठ" संगम बनाने दो,
सागर की बाहों में समाने दो ।
मुझे कण कण में रम जाने दो,
मुझे गगन में मेघ बन जाने दो।।
नदिया हूं , बह जाने दो .......

मुझे बूंद  बन  बरस  जाने  दो,
सबकी  अग्नि को  बुझाने दो।
यश  मंगल - कीर्ति  बनाने  दो,
सबके मन में मुझे घूल जाने दो।।
नदिया हूं बह जाने दो ........

                                 यशवंत राय श्रेष्ठ


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