मार्शल आर्ट्स का पर्याय बने ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह
हम सब जानते हैं कि मार्शल आर्ट्स का मतलब युद्ध की कला से है और ये लड़ाई की कला से जुड़ा पंद्रहवीं शताब्दी का यूरोपीय शब्द है जिसे आज एतिहासिक यूरोपीय मार्शल आर्ट्स के रूप में जाना जाता है। मार्शल आर्ट के एक कलाकार को मार्शल कलाकार के रूप में संदर्भित किया जाता है पर यहां मैं एक भ्रांति को दूर कर दूं कि आज चीन में मार्शल आर्ट और कुंग फू जैसी विद्या 'बोधीधर्मन' नामक महान भारतीय की देन है। बोधिधर्मन् ( 520-526 ई) न सिर्फ मार्शल आर्ट बल्कि आयुर्वेद, सम्मोहन, और पंच तत्वों (भूमि,गगन,वायु,अग्नि,जल) को काबू में करने की विद्या बखूबी जानते थे और उन्होंने हमेशा अपने ज्ञान का प्रयोग लोककल्याण में किया। इसी बोधिधर्मन की परिपाटी को आगें बढ़ाने में एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न भारतीय ग्रांड मास्टर जसबीर सिंह का जन्म हुआ। आज जसबीर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। दुनिया उन्हें मार्शल आर्ट्स के पर्याय के रूप में सम्मान दे रही है। तो, आइये! जानते हैं कुछ सवालों के जरिए मार्शल आर्ट को, ग्रांड मास्टर डॉ. जसबीर सिंह की जुबानी -
सर आपका पूरा नाम क्या है और आपका जन्मस्थान कहां हैं? वर्तमान में आपका कहां निवास स्थान कहां पर हैं?
मेरा पूरा नाम ग्रैंड मास्टर प्रो. डॉ. जसबीर सिंह है । मेरा जन्म भारत में पंजाब के ऐतिहासिक शहर कपूरथला में हुआ था। वर्तमान में मैं कैलीफोर्निया यूू. एस. ए में बतौर अमेरिकन नागरिक निवास कर रहा हूं।
आपने मार्शल आर्ट को ही अपने करियर के रूप में क्यों चुना?
सच कहूँ तो मैंने कभी भी इसे अपने कैरियर के रूप में नहीं सोचा था पर अब मेरे लिए मार्शल आर्ट्स मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है। आज मैं कह सकता हूं कि मार्शल आर्ट एक जीने की अद्भुत कला का नाम है। यह लोगों को सुरक्षा देने का एक सुअवसर की तरह है। जिसे मैं सर्वसुलभ करने को संकल्पित हूं।
आपका मार्शल आर्ट्स में रूझान कब से हुआ?
मैं बचपन में ब्रूसली की फिल्में देखता था और अंततः, उसकी फिल्मों का आकर्षण ही मेरी लाईफ बन गया।
ये ताईकवंडो और मार्शल आर्ट में क्या बड़ा अंतर है?
ताइक्वांडो एक स्पोर्ट्स मार्शल आर्ट्स है जो कि कोरिया में उत्पन्न हुआ। हालांकि इसको पौराणिक मार्शल आर्ट्स भी कहा जा सकता है। आज कल ताइक्वांडो एक ओलंपिक स्पोर्ट्स है। जिसमें मैं अभी वर्ल्ड ताइक्वांडो हैडक्वाटर्स कुक्कीवॉन कोरिया से सर्टिफाइड हूं।
आपका मार्शल आर्ट में व्हाइट बेल्ट से ब्लैक ब्लैक का सफर किन चुनौतियों से भरा रहा ? क्या इसमें घातक इंजरी (चोट) लगती है ?
हमारे देश भारत में उन दिनों मार्शल आर्ट को इतनी प्राथमिकता नहीं मिलती थी और घर का कोई भी सदस्य मुझे मार्शल आर्ट सीखने नहीं देना चाहता था।
उन्हें लगता था कि मैं मार्शल आर्ट्स सीख कर गुंडा बन जाऊंगा पर मेरी माँ ने मुझे समझा और पूरा सपोर्ट किया। मेरा मार्शल आर्ट्स सीखना मेरे जीवन का एक टर्निंग प्वाइंट था। मैंने मेरे जीवन में पांच वर्ल्ड मार्शल आर्ट चैम्पियनशिप खेलीं हैं और जीतीं हैं जिनमें
1- वर्ल्ड मार्शल आर्ट एंड किक बॉक्सिंग चैम्पियनशिप 10-12 नवम्बर 2000 इटली में 5वें स्थान पर जीता।
2-वर्ल्ड ताइक्वांडो डू मूडो चैम्पियनशिप 18-19 नवम्बर 2000 पेरिस में तीसरा कांस्य पदक जीता।
3. 12वें इंटरनेशनल मुयेथाई और कराटे चैम्पियनशिप 20-22 फरवरी 2001 थाईलैंड में सिल्वर मैडल जीता।
4. 8वें अंतरराष्ट्रीय कराटे एंड किक बॉक्सिंग चैम्पियनशिप 23-25 मई नेपाल में तीसरा कांस्य पदक जीता।
5. एसोचायज़िओन सेंट्री स्पोर्टिवी अंतर्राष्ट्रीय चैम्पियनशिप 15 मई 2005 इटली में प्रथम स्वर्ण पदक जीता ।
अंततः मैंने "अभ्यास! दृढ़ता! धैर्य! फिर पूर्णता इस मंत्र को अपने जीवन में उतारा और चलता गया, आगें बढ़ता गया। कहते हैं न ''नो पेन नो गेन'' इंजरी तो कई बार हुई पर में जीतने के लिए बल्कि नहीं सीखने के लिए खेलता रहा और आज भी में सीखने के लिए ही खेलता हूं। सच बोलूं तो मैं अपने लाइफ का पहला स्टेट मैच हारा था और इसीलिए शायद में आज जीता हुआ एक सफल खिलाड़ी हूं।
मार्शल आर्ट् में अगर आपको कुछ सुधारने और नया करने का मौका मिले तो आप क्या नया करना चाहेंगे ?
मार्शल आर्ट्स कई प्रकार के हैं। आज कल मार्शल आर्ट्स के नियम और कानून कुछ कुछ अलग हो गए है जो कि में चाहता हूं कि मार्शल आर्ट्स को भी अकादमी शिक्षा से जोड़ा जाये जिसमें ग्रेजुएशन से लेकर डॉक्टरेट तक की डिग्री प्राप्त की जा सके तथा इसको वैश्विक स्तर पर शिक्षा आयोग अनुदान दे।जिससे मार्शल आर्ट का भी एकेडमिक ग्लोबलाइजेशन हो सके।
खुद को एक लाइन में कैसे परिभाषित करेंगे ?
'विनम्र बनो' इस मंत्र को आधार बनाकर जिंदगी को सीखते हुए लोककल्याणकारी भावना से जो आगें बढ़ता चला जा रहा है वो जसबीर सिंह है ।
आजकल इसे देश विदेश के स्कूलों में व कई सामाजिक संस्थाओं ने आत्मसुरक्षा हेतु प्रमुखता से जोड़ा हुआ है पर इसे सब्जेक्ट का दर्जा नहीं मिल सका तथा ओलम्पिक खेलों में भी इसे वो सम्मान प्राप्त नहीं। इस पर आप क्या कहना चाहेगें?
सही मायने में कहा जाए तो इसमें भी एक पेजीदा पेच है। हम हर एक मार्शल आर्ट का एक ही एकेडमिक या फिर एक ही प्रोग्राम में एडजस्टमेंट नहीं करा सकेंगें। क्योंकि मार्शल आर्ट्स कई देशों में कई प्रकार के हैं और कई मार्शल आर्ट् के बारे अब तक पता भी नहीं लग पाया है परन्तु फिलहाल जूडो, ताइक्वांडो और शॉटोकन कराटे ओलंपिक गेम्स में शामिल हैं और कई एकेडमिक स्कूल में फिजिकल एजुकेशन में मार्शल आर्ट्स को प्रमुखता दी जा रही है। आने वाले दिनों में मार्शल आर्ट्स और उभरे ऐसी में कामना करता हूं।
इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेगें ?
मार्शल आर्ट्स एक तपस्या है एक जीने की कला है। जिसे समझने के लिए इसे जीना पड़ता है। फिर एक दिन हम इसमें खुद को स्वत: ही ढ़ाल लेते हैं। युवाओं को यही कहूंगा कि मार्शल आर्ट का कोई शॉर्टकट नहीं है। आप बस "वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो, हाथ में ध्वजा रहे, बल दल सजा रहे, तुम निडर डटे रहो। एक दिन विजयश्री स्वंय आपका विजय तिलक कर देगी।
मार्शल आर्ट् में इतना ऊंचा मुकाम पाने के अलावा वर्तमान में आप विश्वहित में और क्या नया कर रहे है ?
मैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एडवाइजरी बोर्ड का ऑफिशयल मेम्बर हूं और राष्ट्रपति के अवॉर्ड ऑफिस का भी मेम्बर हूं जिसके द्वारा में कई देशों के अलग - अलग क्षेत्र में अपने सर्वोच्च योगदान द्वारा विश्व की प्रतिभाओं वैश्विक स्तर पर उभारने का प्रयास कर रहा हूं और इसके साथ ही में कई अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी में प्रेसिडेंट हूं। इसके अलावा कई अंतराष्ट्रीय एनजीओ और कई अंतर्राष्ट्रीय मिलिटरी और पुलिस संस्थानों से भी जुड़ा हुआ हूं। मेरा मानना है कि संसार के हित के लिए जितना भी कर सकते हो वो खुशी से करना चाहिए।
आपकी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेगें ?
कहते है कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे एक महिला का हाथ होता है और जो 'मेरी माँ' है। मेरा मानना है कि माँ से अधिक कोई और आपका सच्चा सलाहकार नहीं हो सकता।
इस क्षेत्र में इतनी ऊंचाई हासिल करने के पीछे आपको क्या संघर्ष रहा ?
कहते हैं जिस क्षेत्र में आपकी रुचि हो उस क्षेत्र में चलते हुए आपको जितना भी संघर्ष करना पड़े उसमें आनंद और आत्मसंतुष्टि निहित होती है और वो जीवन ही क्या जिसमें रोमांच न हो जिसमें उतार - चढ़ाव न हो। यही सब चीजें हमें जीना सिखाती हैं और जीवन पथ का सफल पथिक घोषित करतीं हैं। जिंदगी जीने के कई अंदाज़ होते है और मुझे मेरा यही अंदाज़ पसंद है।
आप लम्बे वक्त से अमेरिका में हो। कभी भारत याद नहीं आता?
बिल्कुल याद आता है। भारत में मेरी जड़ें हैं और मैं मेरी जड़ों को कभी नहीं भूलता। मेरी रगों में बसता है भारत।
रिपोर्ट- आकांक्षा सक्सेना
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