हां तवायफ हूँ मैं....
हां कई नाम है मेरे....?
कोई वैश्या,तो कोई देवदासी कहता है।
कोई पिंगला तो कोई गणिका कहता है।
गढ़ लेते है सब मेरा नाम,
रूप व यौवन से शब्द लेकर...
कोई रूपसी,कामिनी,अप्सरा कहता है
तो कोई बाजारू ,रखेल ,बेहया,रंड़ी...
किसी को रूपजीवा, कुंभदासी,पुंश्चली कहना पसंद है
न जाने कितनी उपमाएं गढ़ ली मेरे लिए।
मेरे अनाम नाम की.....
हा तवायफ हूँ मैं....
दिन की रौशनी मेरे लिए स्याह और
रात का अँधेरा रौशन है मेरे लिए...
कब कहाँ किसी ने जाना मुझें....?
कौन हूँ कैसी हूँ क्यों हूँ मैं.....?
हर किसी की नजर पड़ती है बस
नीचे से ऊपर को ओर निहारती..
मेरे रंगे पुते बदन को।
मेरे बदन की उभरी खरोचें
कहाँ दिखाई देती किसी को....?
जिन्हें छिपा लेती हूँ हर सुबह उबटन के लेप से।
मेरे उरोजों का उभार,जिस्म में भरा
मांस ही दिखता है उन्हें...
हा तवायफ हूँ मैं....
रोज कई कई बार लगता है मेरा मोल
जिस्म का वजन देखकर...
कसाई के बकरे की तरह....
कब कहाँ दिखाई देता है किसी को..?
मेरा कलुषित भूत और अंधकूप सा भविष्य।
रक्तिम मांस के नीचे छिपा दिल कहाँ देख पाता कोई..?
हा तवायफ हूँ मैं.....
हर रात सूरज ढलते
भटकते आ जाते है
सफेदपोश लगाने बोली
मेरे मांस और मंजा की.....
जिनके कुर्ते का रंग दिन के उजाले में
चटकता है मोती सा....
रात भर करते है मुँह काला....
मेरे जिस्म के गोरे रंग से...
मेरी श्वेत पिंड़लियों का गुणगान करते।
मेनका ,रंभा ,उर्वशी से आगे कर!
हा तवायफ हूँ मैं......
पर वेपर्दा हूँ बापर्दा नही
न धोखा,न फरेब ,न दगा़,न घात
इन सब से दूर
न कोई राज है मेरा,
न दोहरा चरित्र
सब कुछ खुली किताब सा है मेरा जीवन।
कुछ दोहरे चरित्र वालो से अलग!
हा तवायफ हूँ मैं.....
पर सरिता सी पवित्र
ढोती हूँ मैला, समाज का...
हर रात
मौन रहकर....
हर दर्द को दबा कर
जो दिया है इसी समाज ने...
हा तवायफ हूँ मैं....?
हेमराज सिंह
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