साहित्य चक्र

26 July 2020

मैं लद्दाख की सरहद पर ललकरा हूं।



चीन कम्पनी की तिजारत के साथ तंग करते हो,
अपने को सुरक्षित तो हो नहीं यहां जंग करते हो।

तेरा समान का बहिष्कार से औकात दिखाऊंगा,
तेरी बुराई का जवाब से तुझ पे लात दिखाऊंगा।

पूरे विश्व को कोरोना से लपट ली शर्म नहीं है तुझे,
पूरे विश्व को संकट में ला दिया भ्रम नहीं है तुझे।

तेरा पैरों में कभी हिंदुस्तान झुक नहीं सकता,
तेरा अंत के बिना हिंदुस्तान रुक नहीं सकता।

मूर्खता जैसा काम किया, क्या अंज़ाम हुआ चीन,
विश्व के चैनल,अख़बार में, क्या पैग़ाम हुआ चीन।

क्रोध में आज मैं लद्दाख की सरहद पर ललकरा हूं
हिन्दुस्तान में जन्म हुई है हिंदुस्तान में कुछ करा हूं


                                         अनुरंजन कुमार "अंचल"


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