!पुरुषत्व को जीती!!
मै प्रकृति
तुम पुरुष
शाश्वत सत्य
जीवन सार
अंत राख
करो धारण
बन अघोरी
देह पर मुझे
सजाकर
एकाकार हो
लीन मुझमें जाओ।
योनि से बहते
रज का मस्तक पर
तिलक लगाकर
शोभित करो ललाट को
कर पाओगे!
घृणित मान
हाथ तक ना लगाओगे
लांघकर समाज
की बेडियां
पूजन भैरवी सा
कर पाओगे!
मै सृष्टि आधार
तुम्हारे वीर्य से
करूँ जीवन निमार्ण
फिर भी मै असितत्व हीन
जो करे तुम को साकार
अभिशप्त, क्यों!
जीवनदायिनी प्रकृति
मत करो उद्बेंलित
संहारक बन
तोडूं रीति
देना मेरी नियति
मै प्रकृति
पुरुषत्व को जीती
✍️ डॉ रचनासिंह"रश्मि"
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