साहित्य चक्र

17 August 2019

लहरा के तिरंगा भारत का



लहरा के तिरंगा भारत का 
हम आज यही जयगान करें,
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


सिर मुकुट हिमालय है इसके 
सागर है चरण पखार रहा
गंगा की पावन धारा में 
हर मानव मोक्ष निहार रहा,
फिर ले हाथों में राष्ट्रध्वजा
हम क्यों न राष्ट्रनिर्माण करें।।

यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


इसकी उज्ज्वल धवला छवि
जन-जन के हृदय समायी है
स्वर्ण मुकुट सम शोभित हिमगिरि
की छवि सबको भाई है।


श्वेत धवल गंगा सम नदियाँ
हर पल इसका गान करें
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


नव नवीन पहनावे इसके
भिन्न भिन्न भाषा भाषी
शंखनाद से ध्वनित हो रहे
हर पल मथुरा और काशी
पावन, सुखदायी छवि इसकी
क्यों न हम अभिमान करें
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


लहरा के तिरंगा भारत का 
हम आज यही जयगान करें,
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।।

                                              मालती मिश्रा "मयंती"✍️


No comments:

Post a Comment