साहित्य चक्र

17 August 2019

एक फौजी की लाश

एक फौजी की लाश ले जाते वक्त
उसके नन्हे से बच्चे ने माँ से कहा
माँ पापा को कहाँ ले जा रहे है
मुझे भी पापा के साथ जाना है
तब उस माँ ने बच्चे से कहा
बेटा तुम्हारे पापा के अधूरे
फर्ज अब तुम्हे निभाना है



बड़ा होकर तुम्हें भारत माता की
सेवा करने फौज में जाना है
अपने पापा के अधूरे काम पूरे कर
भारत भूमि का कर्ज चुकाना है
पापा की तरह बनकर तुम्हें
दुश्मन का दिल दहलाना है
अपने बूढ़े हो चुके दादी बाबा की
चिता को भी तुम्हें जलाना है
माँ की सूनी माँग का दर्द तुम्हें मिटाना है
तुम्हे भारत में पैदा होने का भी तो
मान रखना है कर्ज चुकाना है
नन्हे नन्हे कदमों के बड़े कदम
दुश्मन की चौखट से टकराना है
तुम्हे पापा के साथ नहीं जाना है
यहीं रहकर तुम्हे कर्ज चुकाना है
अपने देश से आतंकवाद मिटाना हो
देश की रक्षा करनी है देश को
दुश्मन की बुरी नजर से बचाना है
इतने कर्ज इतने फर्ज छोड़कर
तुम्हे कहीं नहीं जाना है
बच्चे ने कहा माँ ला दे पापा की
बर्दी मुझे मै अभी देश सेवा को जाऊंगा
दुश्मन को ललकार उसकी छाती पर
अपना तिरंगा फहरा कर आऊंगा
दे पापा के जूते मुझे मैं उसे पहन
अपनी किस्मत पर इतराऊंगा
पापा का हर काम अधूरा अब
मुझे पूरा करने जाना है
अब और सबर ना मुझसे होगा
होगी बंदूक मेरी और दुश्मन का सीना होगा
माँ मुझसे बडे होने तक इंतजार ना होगा
मुझे जाने दे मुझे अभी जाना है
जिसने मुझसे मेरे पापा छीने
सबक उसे जाकर सिखाना है
माँ ने बेटे को कसकर सीने से लगा लिया
उसने देश का एक और सच्चा सेवक पा लिया
वो रोते रोते कह उठी उठ चल बेटा
ये बात तेरे पापा को भी बताना है
अब वो मन में कोई भार ना लेकर जाये
उनके बेटे ने कर्ज मुक्त किया है उनको
ये खुशखबरी उन्हे सुनाना है

                                                ©आरती त्रिपाठी

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