साहित्य चक्र

07 August 2019

कल तक जो मेरे दीवाने थे

*बेवफा यूँ हो जाएंगे*




  संग जिनके 
  हंँसते गाते
  कुछ जाने/पहचाने 
  आज हुए वो 
  बेगाने से
  कल तक जो मेरे दीवाने थे।


  वफा को वो 
  क्या जाने !
  जो ख़ुद से अनजाने 
  हुए अजनबी हैं 
  वो जो हर पल 
  साथ निभाते थे।


  बदल गई राहें
  उनकी जो 
  कदम से कदम 
  मिलाते 
  कसमें वादे 
  झूठे सारे 
  सच्चे उनके बहाने थे।


  बाँहों में मेरी
  गुजारी रातें
  मिले यूँ जैसे!
  न पहचाने 
  याद आते हैं 
  गीत पुराने
  जो कभी प्रेम तराने थे।


  बेवफा
  यूँ हो जाएँगे
  यह न जाने!!
  इंतजार 
  करते रहे बहोत
  वो लौटकर न आए
  और न आने थे।


                                      डॉ. रचनासिंह"रश्मि"


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