साहित्य चक्र

17 August 2019

*दरुहा*




निरंजन ह दु तीन बाटल दारू ल धरके अइस। घर म गिस ताहन पउवा मन ला लुका दिस। एक ठन ला धरिस अउ तरिया कोती चल दिस। ओकर बेटा विनय ह टूकूर  टूकूर देखत राहय । ओतकी बेर निरंजन ह दारू ल निकालिस, आंखी ला  मुँदिस अउ गरगट ले पी दिस। अपन बाबू ल देखके विनय ह दारू म मोहागे। घर म आके दारू ल खोजिस, एक ठन पउवा उहू ल मिलगे। दारू ल धरीस  अउ मजा मारत पी दिस। ओ ह पटियागे अउ खटिया म सूत गे।



विनय के दाई ह अड़बड़ दयालु राहय अउ बहनी ह पढ़ई म आघु राहय । दूनो झन घर म अइस ओतका बेर घर ह महकत राहय। विनय ल पटियाए देखिस ताहन दाई - बेटी ह चिंता म पड़गे। विनय अउ ओकर बाबू ह  पियइ - पियइ म अब्बड़ दरूहा बनगे अउ रोज लड़ई- झगड़ा होवय। एक दिन विनय के दाई ल खेत- खार म कमाए रीहिस तेकर पईसा मिलीस उहू ल निरंजन ह झटक लिस अउ इही बात म डउका - डौकी मनमाने झगड़ा होगे। निरंजन ह लउठी ल धरिस अउ अब्बड़ ठठा दिस। ओला अपन बेटी संग म घर ले खेद दिस।

दाई अउ बेटी ह घर- दूवार ला छोड़के अंते गांव म बसगे। दाई ह काम बुता करे अउ बेटी ल रोज स्कूल भेजय। एक दिन ओकर बेटी ह बड़े अफसर बनगे। दाई - बेटी ह अपन दम म घर ल बनइस अउ खुशी- खुशी राहन लागीस। एतिबर विनय अउ ओकर बाबू ह रोज झगड़ा होवय। एक दिन विनय ल दारू नइ मिलीस ताहन  अपन बाबू ल राहपट - राहपट झड़ दिस अउ घर ले खेद दिस। निरंजन ल चेत अइस ताहन बेटी अउ बाई करा चल दिस अउ रो - रोके क्षमा मांगिस। तीनो झन सुख ले राहन  लागीस।

विनय ह दारू पी-पी के अपन घर - दुवार ल बेंच दिस। अउ दारू ले बर पईसा तको सिरागे राहय। अंधियारी रात म विनय ह पईसा चोराए बर गोंटिया के घर म परदा कोती ले कुद दिस। ओतकी बेर रखवारी करइया मन ह विनय ल पकड़ लिस अउ डोरी म बाँध दिस। सुभे होइस ताहन गांव वाला मन सकलागे अउ सबो झन ह विनय ल गारी सुनइस कोनो - कोनो ह ढेला पथरा म फेंकके मारन लागीस। विनय के हवा पानी बंद होगे। दाँत ल निपोर दिस। अउ वो दिन ले दारू ल छोड दिस। ओहा अपन दाई ददा करा गिस अउ सेवा करे म लगगे।


                                                          भास्कर वर्मा 'उमंग'


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