साहित्य चक्र

17 August 2019

गुलाम आज़ादी


मुबारक हो, 
मुबारक हो 
आज़ाद हिंद के
गुलाम नागरिकों को 
आज़ादी मुबारक हो।

गुलाम हो,
गुलाम हो 
आज भी तुम 
अपने कामुक विचारों के
गुलाम हो।

शिकार हो,
शिकार हो
आज भी तुम
गली चौराहों में 
घूमती फिरती 
अपनी गंदी नज़र
का शिकार हो।

बेहाल हो,
बेहाल हो
आज भी तुम
जाति बंधन के
कटु नियमों से
बेहाल हो।

गुलाम हो,
गुलाम हो 
आज भी तुम 
धर्म के नाम पर
वोट लेते नेताओं के
कटु विचारों के 
गुलाम हो।

मुबारक हो,
मुबारक हो  
आज़ाद हिंद के
गुलाम नागरिकों को 
आज़ादी मुबारक हो।


                                                                राजीव डोगरा


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