साहित्य चक्र

25 August 2019

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की जयंती

हर भारतीय के जहन में बचते है भारत रत्न राजीव गांधी 


भारत रत्न एवं देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की पिचहत्तर वीं जयंती आज के दिन सम्पूर्ण राष्ट्र में आदर के साथ मनाई जा रही है। इनके द्वारा किये गये राष्ट्रउत्थान के कार्यो को याद किया जा रहा है। राजीव गांधी देश के छठे व सबसे युवा प्रधानमंत्री थे, इन्होंने यह पद संभाला तब इनकी आयु महज चालीस साल की थी।इनका जन्म मुंबई मे 20 अगस्त 1944 में हुआ था, इनका असमायिक दुखद निधन 21 मई को आम चुनाव मे प्रसार के दौरान एक भंयकर बम विस्फोट में तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर मे हो गया था।राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 75वीं जयंती 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस के रूप में मना रही है। इसके संबंध में राजस्थान के शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को एक सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर की भाषा कुछ ऐसी है कि चर्चा का विषय बरानी हुई है। इस सरकारी आदेश में राजीव गांधी को युवा हृदय सम्राट बताया गया है और कहा गया है कि सूचना क्रांति के दैनिक जीवन में बढ़ते उपयोग के लिए उन्हें राजीव गांधी का अत्यंत आदर के साथ स्मरण किया जाता है। विपक्षी दल भाजपा ने आदेश की भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि सरकार प्रशासनिक तंत्र का भी राजनीतिकरण कर रही है।इस मौके पर राजस्थान के सरकारी स्कूलों में वाद विवाद व निबंध प्रतियोगिता तथा प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाएगा। शिक्षा विभाग ने इस संबंध मे आदेश कर सुचारू रूप से मनाने  को कहा है।स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे। वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ ही उनका अन्य बड़ा मक़सद इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल की, जिनमें संचार क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल हैं।वे देश की कम्प्यूटर क्रांति के जनक के रूप में भी जाने जाते हैं। वे युवाओं के लोकप्रिय नेता थे। उनका भाषण सुनने के लिए लोग घंटों इंतज़ार किया करते थे। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए जिसका असर देश के विकास में देखने को मिल रहा है। आज हर हाथ में दिखने वाला मोबाइल उन्हीं फ़ैसलों का नतीजा है।देश में पीढ़ी गत बदलाव के अग्रदूत राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश हासिल हुआ था। अपनी मां के क़त्ल के बाद 31 अक्टूबर 1984 को वे कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे। अपनी मां की मौत के सदमे से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया। दुखी होने के बावजूद उन्होंने अपनी हर ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया था। राजीव गांधी जी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया, जहां इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया।राजीव गांधी की  पुस्तकों के साथ संगीत में उनकी बहुत दिलचस्पी थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय और आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी और रेडियो सुनने का भी ख़ासा शौक़ था। हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस हासिल किया। इसके बाद वे 1968 में घरेलू राष्ट्रीय जहाज़ कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।कैम्ब्रिज में उनकी मुलाक़ात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी, जो उस वक़्त वहां अंग्रेज़ी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। वे ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे, लेकिन 23 जून 1980 को एक जहाज़ हादसे में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारे हालात बदलकर रख दिए। उन पर सियासत में आकर अपनी मां की मदद करने का दबाव बन गया। फिर कई अंदरुनी और बाहरी चुनौतियां भी सामने आईं। पहले उन्होंने इन सबका काफ़ी विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी मां की बात माननी पड़ी और इस तरह वे न चाहते हुए भी सियासत में आ गए। उन्होंने जून 1981 में अपने भाई की मौत की वजह से ख़ाली हुए उत्तरप्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। इसी महीने वे युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए। उन्हें नवंबर 1982 में भारत में हुए एशियाई खेलों से संबंधित महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बख़ूबी अंजाम दिया। साथ ही कांग्रेस के महासचिव के तौर पर उन्होंने उसी लगन से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित और सक्रिय किया।अपने प्रधानमंत्री काल में राजीव गांधी ने नौकरशाही में सुधार लाने और देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कारगर क़दम उठाए, लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नाकाम करने की उनकी कोशिश का बुरा असर हुआ। वे सियासत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे, लेकिन यह विडंबना है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्होंने कई साहसिक क़दम उठाए, जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिज़ोरम समझौता आदि शामिल हैं। इसकी वजह से चरमपंथी उनके दुश्मन बन गए। नतीजतन, श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक़्त उन पर हमला किया गया, लेकिन वे बाल-बाल बच गए।साल 1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन वे कांग्रेस के नेता पद पर बने रहे। वे आगामी आम चुनाव के प्रचार के लिए 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर गए, जहां एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई। देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी। राजीव गांधी की देशसेवा को राष्ट्र ने उनके दुनिया से विदा होने के बाद स्वीकार करते हुए उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया जिसे श्रीमती सोनिया गांधी ने 6 जुलाई 1991 को अपने पति की ओर से ग्रहण किया। राजीव गांधी अपने विरोधियों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, तो एक पत्रकार ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क किया। उन्होंने पत्रकार को अपने घर बुलाया और कहा कि अगर वे विपक्ष के नेता के नाते उनसे राजीव गांधी के ख़िलाफ़ कुछ सुनना चाहते हैं, तो वे एक भी शब्द राजीव गांधी के ख़िलाफ़ नहीं कहेंगे, क्योंकि राजीव गांधी की मदद की वजह से ही वे ज़िन्दा हैं।उन्होंने भावुक होकर कहा कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो उन्हें पता नहीं कैसे पता चल गया कि मेरी किडनी में समस्या है और इलाज के लिए मुझे विदेश जाना है। उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाया और कहा कि वे उन्हें आपको संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद है कि इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर आप अपना इलाज करा लेंगे। मैं न्यूयॉर्क गया और आज इसी वजह से मैं जीवित हूं।फिर वाजपेयी बहुत भाव-विह्वल होकर बोले कि मैं विपक्ष का नेता हूं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि में विरोध में ही कुछ बोलूंगा लेकिन ऐसा मैं नहीं कर सकता। मैं राजीव गांधी के बारे में वही कह सकता हूं, जो उन्होंने मेरे लिए किया। ग़ौरतलब है कि राजीव गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी को इलाज के लिए कई बार विदेश भेजा था। राजीव गांधी की निर्मम हत्या के वक़्त सारा देश शोक में डूब गया था। राजीव गांधी की मौत से अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत दुख हुआ था। उन्होंने स्व. राजीव गांधी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, 'मृत्यु शरीर का धर्म है। जन्म के साथ मरण जुड़ा हुआ है। लेकिन जब मृत्यु सहज नहीं होती, स्वाभाविक नहीं होती, प्राकृतिक नहीं होती, 'जीर्णानि वस्त्रादि यथा विहाय'- गीता की इस कोटि में नहीं आती, जब मृत्यु बिना बादलों से बिजली की तरह गिरती है, भरी जवानी में किसी जीवन-पुष्प को चिता की राख में बदल देती है, जब मृत्यु एक साजिश का नतीजा होती है, एक षड्यंत्र का परिणाम होती है तो समझ में नहीं आता कि मनुष्य किस तरह से धैर्य धारण करे, परिवार वाले किस तरह से उस वज्रपात को सहें। राजीव गांधी की जघन्य हत्या हमारे राष्ट्रीय मर्म पर एक आघात है, भारतीय लोकतंत्र पर एक कलंक है। एक बार फिर हमारी महान सभ्यता और प्राचीन संस्कृति विश्व में उपहास का विषय बन गई है। शायद दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं होगा, जो अहिंसा की इतनी बातें करता हो। लेकिन शायद कोई और देश दुनिया में नहीं होगा, जहां राजनेताओं की इस तरह से हिंसा में मृत्यु होती हो।आज़ाद भारत स्व. राजीव के महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा। स्व. राजीव गांधी की जयंती 'सद्भावना दिवस' और 'अक्षय ऊर्जा दिवस' के तौर पर मनाई जाती है, जबकि पुण्यतिथि 21 मई को 'बलिदान दिवस' के रूप में मनाई जाती है।कुछ लोग जमीन पर राज करते है और कुछ लोग दिलों पर, परंतु आदरणीय राजीव जी गांधी ऐसी शख़्सियत थी जिन्होंने जमीन पर ही बल्कि लोगों के दिलों में राज किया है।वे आज भले ही आज हमारे बीच नही रहें, लेकिन हमारें दिलों मे सदैव रहेगे। उनकी 75वीं जयंती पर शत् -शत् नमन सादर श्रध्दांजलि ।


    "अमेरिका रो टाईम बम, भारत में आ फूट्यो रै ।
     वानै कालो डस ज्यो रे, अपनों राजीव लेकिन ग्यो रै ।। "




                                               - रावत गर्ग उण्डू 


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