सामान्य डिब्बे का सफर
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आधी रात बीत चुकी थी
रेलगाड़ी धड़धड़ाती तीव्रगति से दौड़ रही थी
सन्त रामहरे खड़े-खड़े काफी थक चुके
उनके पैर भी जवाब दे चुके थे
परन्तु सीट तो छोडिये
जमीन भी तिलभर खाली नहीं थी
भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे का सफर
किसी जंग जीतने से कम नहीं होता
और जंग हिंदू-मुस्लिम एक होकर ही जीत सकते हैं ।
मियां गफ्फूर संत रामहरे की परेशानी समझ गये
उन्होंने अपने बेटे अहमद को अपनी गोदी में बिठा लिया
और संत रामहरे जी को बैठने का अनुरोध किया
पहले तो संत जी कुछ सकुचाये पर बाद में बैठ गये
उक्त दृश्य बड़ा ही सुंदर था -
असली भारत की रंग-बिरंगी तस्वीर तो
भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे में ही देखने को मिलती है ।
स्टेशन पर चढने-उतरने में जो किच-किच होती है
वही किच-किच सफर शुरु होने के बाद
प्यार - मुहब्बत, भाई-चारे में बदल जाती है
लोग अनजाने लोग दिल खोलकर
सुख-दुख की बातें बतिया लेते हैं
सामान्य डिब्बे के सफर में...
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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