हाइकु संसार
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नशा जो किया
फिरे भीख मांगता
घर बर्वाद |
रिश्वतखोरी
भरे घड़ा पाप का
ड़र काल से |
मारे उबाल
भारत में अब भी
व्यक्ति की जात |
वो जी रहे हैं
शोषण सहकर
भूख मारके |
कैसा विकास
गरीब हाशिए पे
गाँव निराश |
नोट खाकर
श्रीमान् मालामाल
जन बेहाल |
देश के नेता
जहर उगलते
राज करते |
चारों तरफ
मचा है हाहाकार
जन लाचार |
धुआँ निकला
आज चूल्हा सुलगा
रोटी गरीब |
ईमानदारी
अब कहीं न दिखे
फले बेमानी |
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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