साहित्य चक्र

25 August 2019

मारे उबाल

हाइकु संसार 
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नशा जो किया 
फिरे भीख मांगता
घर बर्वाद |

रिश्वतखोरी
भरे घड़ा पाप का 
ड़र काल से |

मारे उबाल 
भारत में अब भी 
व्यक्ति की जात |

वो जी रहे हैं 
शोषण सहकर 
भूख मारके |

कैसा विकास 
गरीब हाशिए पे 
गाँव निराश |

नोट खाकर 
श्रीमान् मालामाल 
जन बेहाल |

देश के नेता 
जहर उगलते 
राज करते |

चारों तरफ 
मचा है हाहाकार 
जन लाचार |

धुआँ निकला 
आज चूल्हा सुलगा 
रोटी गरीब |

ईमानदारी
अब कहीं न दिखे 
फले बेमानी |

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

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