साहित्य चक्र

17 August 2019

प्रीतबन्धन



"खूबसूरत एहसासों को समेटता 
ख़ामोश मुलाकातों में हॅ॑सी का मंजर देता
अनकहीं, अनदेखीं, अनसुनी बातों को 
अनकहें ज्जबातों में छिपाता 
गुलाब के पंखुड़ियों सा प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता हैं



खुदा का करिश्मा हैं हीरो सा दिखता हैं
दिलनशी चेहरा उसका महकता रहता हैं
कद हैं हठीले,कारगिल के जबाज सा दिखता हैं
अनकहें लफ्ज़ में महफूज रखता हैं
रक्षाकवच बन प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता हैं ।


दुखों में गले लगाता,पिता बन सिरहन देता
चुपके चुपके वह भी रोता
बेजान जिंदगी में खुदा /खुद ही बनता
बाहें फैंला रक्षावचन देता
हर लम्हें प्रीतबन्धन निभाता
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता।


मेरी हसरत को जन्नत बनाता
मेरी हर ख्वाहिश को उड़ान देता
मुझे पंखुड़ियों की तरह रखता
कभी लड़ता झगड़ता,कभी स्नेह करता
कभी मोहलत तो रहम जैंसी धमकियाॅ॑ देता
मेरी अस्मिता का रक्षासूत्र बनता
हर दिन प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता है।।


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