साहित्य चक्र

03 August 2019

भूख से तड़पता

★    गरीबी   ★

गरीब हूँ मैं एक गरीब
इसका मुझको अफ्सोस नही ।
अफ्सोस मुझे इस बात का
मुझको समझते लोग नही ।।



भूख से मैं तड़पता हूँ
बस पानी से पेट भरता हूँ ।
बाहर निकल कर घर से मैं
मेहनत मजदूरी करता हूँ ।।

जहाँ भी मैं चला जाता हूँ
मन मे खिन्न ले आता हूँ ।
कोई नही है मेरे करीब
सब जगह दुत्कारा जाता हूँ ।।

बच्चे भूख से तड़प रहे है
खाना नही उनके नसीबी में ।
मिल जाये कोई जादू की छड़ी
अब जिंदगी कट रही गरीबी में ।।

आगे तीतर ना पीछे तीतर
कचरे में ही मेरा बिस्तर ।
गरीबी ही मेरा जीवन है
नही है कोई मेरा स्तर ।।

आना कभी इस गरीब की
कोठी पे दिल दिखाऊंगा ।
तीतर बितर देखोगे फिर भी
दिल पर अपने बिठाऊंगा ।।

ऐसा क्या गुनाह किया मैंने
गरीबी में पैदा होकर ।
इंसान को ही नही समझे
तुम खुद ही इंसान होकर ।।

                                     ✍️  रोशन पैकरा 'मयारू'


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