साहित्य चक्र

25 August 2019

मानवीय धर्म के हीरे-मोती

   " मानवीय धर्म के हीरा-मोती "

मानवीय धर्म के हीरे-मोती, सब रहते है हर गली-गली ।
ले लो तूम सेवा, दान का प्याला,आवाज लगाओ हर गली-गली ।


दौलत के मतवालों सुन लो, एक दिन तो ऐसा आएगा ।
ये धन-दौलत अर माल खजाना,  यहीं धरा पड़ा रह जाऐगा।।


तब मित्र, प्यारे,सगे,संबधी, सब एक दिन तूझे भूलाएंगे।
कल तक जो अपना कहते थे, जीवड़ा!  वह सबके बीच जलायेंगे ।।


यह जग सराय दो दिन की है, आखिर हमें तो होगी चला-चली।
यह सुन्दर काया माटी होगी, बस! चर्चा होगी गली-गली ।।


मानवीय धर्म को जिसने भी समझा, वो समझो मालामाल हुए।
धन-दौलत के बने पुजारी, सब आखिर में कंगाल हुए।।


जिस देह को तुम सजा-संवारकर, मुहं फैलाए फिरता है ।
जीवन को नशा बनाकर, अपनी दुर्दशा को बढाता है ।।


"रावत" करेगा याद इंसानियत को, अमर सीढी चढ जाएगा।
अब जगा ले कुछ आत्म ज्ञान,  तेरे वंशज भी अमर हो जाएगें।।


मानवीय धर्म के हीरे-मोती, सब रहते है गली-गली ।
ले लो तुम सेवा दान का प्याला, आवाज लगाये गली-गली ।।


                                   - रावत गर्ग उण्डू 

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