साहित्य चक्र

07 April 2019

भारतीय संस्कृति में गणगौर

 *गौरी पूजन उत्सव :- गणगौर*

भारतीय संस्कृति में गणगौर का पर्व राजस्थान का विशिष्ट पर्व है। इसे बड़े उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है ।गणगौर का त्यौहार महिलाओं के लिए  विशेष महत्त्व रखता है ।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणगौर का पर्व ईसर( शिव )और गणगौर (पार्वती ) की अर्चना का प्रतीक माना गया है ।गणगौर पूजन एक समूह के रूप में की जाती है। प्रत्येक समूह में एक नवविवाहिता युवती के साथ होती है 10 से 15 कन्याएं होती है।

सदियों से चल रही इस परंपरा के अनुसार शादी के बाद आने वाले प्रथम गणगौर पर्व पर हर नवविवाहिता को गणगौर पूजन करना आवश्यक माना जाता है।ऐसा मानना है कि नव विवाहिता अपने सुहाग (पति) की दीर्घायु एवम खुशहाली के लिए गणगौर पूजन करती है तथा उसके साथ पूजने वाली कन्याओं की अर्चना सुयोग्य व सुंदर वर की प्राप्ति के लिए की जाती है ।

होली के त्यौहार के दूसरे दिन से गणगौर पूजने वाली युवतियां व कन्याओ की गणगौर पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है ।दिनचर्या के मुताबिक भोर में 5:30 बजे स्नान करके सभी समूह के रूप में बावड़ी, कुआँ, या तालाब से हरि दुब व  पानी लेने जाती है ।इस प्रकार ये नित्य कार्यक्रम 16 दिन तक एक नई उमंग ओर उत्साह से लोक गीतों की मधुर ओर कर्णप्रिय स्वर लहरे बिखेरते हुय चलता रहता है ।

शीतला अष्टमी के दिन युवतीयां रंग -बिरंगे परिधानों सज -संवर कर कुम्हार के घर चाक की मिट्टी लेने जाती है ।उस मिट्टी से नवविवाहिता के घर पर ईसर और गणगौर एवं कानीराम,सालान,रोवा की ये पांच मूर्तियां बनाई जाती है ।गणगौर के लोकगीतों में बिरमादत जी (ब्रह्मा )तथा उसके दो पुत्रों ईश्वरदास (शिव ) और कानीराम (विष्णु ) पुत्री रोवा (रोहिणी) व दामाद  सूर्य (सूरजमल )का उल्लेख भी बहुत ही सुंदर ढंग से किया जाता है ।युवतियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाने तथा रात्रि में बनोरा निकालने की दैनिक किया भी करती है ।समूह की प्रत्येक किशोरी क्रम से बनोरा निकालती है तथा सूर्य भगवान का व्रत रखती है।

 युवतियां सुबह कुएं से दूब व पानी लेने जाती समय ये लोक गीत गाती है-

*  बाड़ी वाला बाड़ी खोल,
     बाड़ी की किवाड़ी खोल।
    छोरियां आई दूब न........*

*  सोना रो चीटियों हाथ में,
   ईसर दास जी बोय बा न जाय।
   बिरमादत्त जी बोय बा न जाएं,
   झखर झारी हाथ में,
   बहू गौरा सिंच बा न जाए.....

 दूब ओर पानी लेकर आने के बाद घर पर गणगौर पूजन करने  हुए गीत गाती है-
* गौर ऐ गणगौर माता खोल किवाड़ी,
  बाहर आई रोआ - सौआ पजन वाली.....
*  काचा - काचा गोबलिया कुन काडे राज.......
* ईसर जी तो पेंचों बांधे,
   गौरा बाई पेंचों सवारे ओ राज,  
   म्हे ईसर थारी साली हाँ......
* गौर-गौर -गोमती,ईसर पूजे 
    पार्वती.......

रात्रि में युवतियां बनोरा निकालते हुवे गीत गाती है-
*  ये मोती संमदरिया में निपजे,
   सौव म्हारे ईसरदास र,
    कान बधाओं म्हारी गौरल को..
* ईसरदास जी क मांडी गणगौर,
    बहू गौरा क मांडो झूमर कडो,
     थारे कोठे तो सोव चन्द्रहार,
     कोठे सोव झूमर कड़ो.....

चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन राजस्थान में अनेक स्थानों पर गणगौर के मेले लगते हैं एवं गणगौर की सवारी बड़े धूम -धाम से निकाली जाती है। विशेषकर  गुलाबी नगरी जयपुर में गणगौर की सुन्दर  व अलौकिक सवारी  देखने योग्य होती है ।गणगौर समापन के दिन युवतियां गणगौर लेकर नए-नए परिधान पहनकर लोकगीत गाती हुई गणगौर को कुये या तालाब में विसर्जन करती है ।युवतियां इसे गणगौर को ससुराल भेजना मानती है।


इस प्रकार 16 दिन से चल रहा है यह उमंग और उत्साह का पर्व गणगौर की विदाई के साथ संपन्न हो जाता है ।

तीज त्यौहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर।

 अर्थात त्यौहार, पर्व श्रावणमास की तीज से प्रारम्भ होते है और गणगौर  विसर्जन के साथ चार माह के लिए के त्यौहारों का सिलसिला बंद हो जाता है ।
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                                                        *शम्भू पंवार*


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