अगर तुम मचलना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
ये गिर कर संभलने की बाते है झूठी,
कभी जान अटकी कभी साँस टूटी,
अगर दर्द सहना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
सारे गमों को समेट साथ लेकर के चलना,
कभी खुद से बिछड़ना कभी उनसे मिलना,
अगर जुड़-छूट जुड़ना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
इश्क़-ए-सफ़र की नही कोई मंजिल,
है मिलता कभी टूटता है कभी दिल,
अगर निगाहों से छलना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
एकतरफा मोहब्बत की राहें है मुश्किल,
कभी उनसे खोकर उनसे ही जाते है मिल,
अगर मिलना-बिछड़ना नही जानतें हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
इश्क़ की तपन में तपना पड़ेगा,
हाथ में ले मशालें चलना पड़ेगा,
अगर बुझना और जलना नहीं जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
-©शिवांकित तिवारी "शिवा"
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