साहित्य चक्र

12 April 2019

समंदर सा हृदय

गीत


समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा 
प्रेम  की धारा  बहा दी बडे़ चाब से
छीन रहा  है महक देखिये तो मधुप
खिलते हुए कोई  प्रीत के गुलाब से 
विश्वास  का एक घर  बनाया हमने
प्रेम की प्रतिमा  को  स्थापित करूँ
शाप से जो  अधुरा  रहा गया  प्रेम
बहाके  गंगा उसे  अनुशापित करूँ
भागीरथी बन वसुधा पर प्राणप्रिये
पावन गंगा को भी लाऊँ  तेरे लिये 
किंतु रंज यही अब हृदय को हुआ 
ख्वाब भी छीन लिया अब ख्वाब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा 
प्रेम  की धारा  बहा दी बडे़ चाब से


प्रतिच्छबि न्यारी है  रिश्मी रूप  की 
नवल अनुराग  से  प्रीत को निहारूँ
यादों का मधूप प्रीत के सोमरस को
चुराये  नैन से तब मीत तुझे पुकारूँ
दर्पण सी प्रतिपल तेरी अनुपम छवि
प्रतिबिंब बन दिखती है कण कण में
जीवन पथ पर मुझे यही अहसास है
सिधुं  का  प्रेम पाती नदी समर्पण में
किंतु आशाओं की इन बहारों में भी
बच  न  पाया मैं पहुँच किनारों में भी
सागर के बिन ही डूबी थी मेरी नौका
प्रलय  हो गयी बस एक बूंद आब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा 
प्रेम  की धारा  बहा  दी बडे़ चाब से


अलंकृत  छवि  प्रेम की बनो तो सही
भाव  पुष्प से देवी मैं आरती गाऊँगा
नैन के निर्मल जल से चरण को धोके
आओ तो सही पुष्प पथ पे बिछाऊँगा
हृदय की सेज पर  विश्राम करना तुम
धड़कनों का  मधुर संगीत सुनना प्रिये
स्वप्न  में उपवन में विचरण करो जब
तब हमारे लिये प्रीत पुष्प चुनना प्रिये
थाम के हाथ तुम्हारा राह कट जायेगी
जिंदगी की घड़ी तेरे साथ बट जायेगी
किंतु सिमट गयी निराशाओं में जिंदगी
एक  किरण भी न मिली आफताब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा 
प्रेम  की धारा  बहा दी बडे़ चाब से


                                                       भानु शर्मा



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