गीत
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
छीन रहा है महक देखिये तो मधुप
खिलते हुए कोई प्रीत के गुलाब से
विश्वास का एक घर बनाया हमने
प्रेम की प्रतिमा को स्थापित करूँ
शाप से जो अधुरा रहा गया प्रेम
बहाके गंगा उसे अनुशापित करूँ
भागीरथी बन वसुधा पर प्राणप्रिये
पावन गंगा को भी लाऊँ तेरे लिये
किंतु रंज यही अब हृदय को हुआ
ख्वाब भी छीन लिया अब ख्वाब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
प्रतिच्छबि न्यारी है रिश्मी रूप की
नवल अनुराग से प्रीत को निहारूँ
यादों का मधूप प्रीत के सोमरस को
चुराये नैन से तब मीत तुझे पुकारूँ
दर्पण सी प्रतिपल तेरी अनुपम छवि
प्रतिबिंब बन दिखती है कण कण में
जीवन पथ पर मुझे यही अहसास है
सिधुं का प्रेम पाती नदी समर्पण में
किंतु आशाओं की इन बहारों में भी
बच न पाया मैं पहुँच किनारों में भी
सागर के बिन ही डूबी थी मेरी नौका
प्रलय हो गयी बस एक बूंद आब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
अलंकृत छवि प्रेम की बनो तो सही
भाव पुष्प से देवी मैं आरती गाऊँगा
नैन के निर्मल जल से चरण को धोके
आओ तो सही पुष्प पथ पे बिछाऊँगा
हृदय की सेज पर विश्राम करना तुम
धड़कनों का मधुर संगीत सुनना प्रिये
स्वप्न में उपवन में विचरण करो जब
तब हमारे लिये प्रीत पुष्प चुनना प्रिये
थाम के हाथ तुम्हारा राह कट जायेगी
जिंदगी की घड़ी तेरे साथ बट जायेगी
किंतु सिमट गयी निराशाओं में जिंदगी
एक किरण भी न मिली आफताब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
भानु शर्मा
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