साहित्य चक्र

07 April 2019

जिंदगी में हंसना


चाहत है मेरी

जिंदगी में हंसना चाहत है मेरी,
लहरों से लड़ना चाहत है मेरी,
हार न मानना चाहत है मेरी,
रोते को हंसा ना चाहत है मेरी।
आसमान में उड़ना चाहत है मेरी,
धरती से सहनशील बनना चाहत है मेरी।
तेरी आंखों में डूब जाना चाहत है मेरी,
तेरे घर को सजाना चाहत है मेरी।
दुनिया में शांति फैलाना चाहत है मेरी,
सबको प्यार में रंग ना चाहत है मेरी।
सब के दुखों को अपनाना चाहत है मेरी,
सबको खुश मैं खुश हो ना चाहत है मेरी।
बारिश में भीग जाना चाहत है मेरी,
जल को बचाना चाहत है मेरी।
पर्वत की तरह ठंडी हवा बन ना चाहत है मेरी,
पंछियों से चाहचहाना  चाहत है मेरी।
फूलों की तरह खुशबू फैलाना चाहत है मेरी,
बचपन की शरारतें करना चाहत है मेरी,
इस धरती को स्वर्ग बनाना चाहत है मेरी।।

                                                    ।। गरिमा ।।


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