साहित्य चक्र

12 April 2019

जीवन के आपा-धापी में

।।जीवन क्या है।।

जीवन के  आपाधापी में,
 यह सोच न पाया कि जीवन क्या है?
क्या बुरा किया क्या भला किया,
कैसे बीत गए पल सारे।

हर तरफ अँधेरा है भागमभाग है,
सोच नहीं पा रहा है किस तरफ जाऊ।
मैं  जहा खड़ा था वही खड़ा हूँ ,
मैं समझ न पाया की जीवन का सच क्या है।

क्यों भाग रहा हू मैं?
किससे भाग रहा हूँ ?
क्या यही है जीवन,
जिसमे भाग दौड़ लगी रहती है।

जिसको सोना समझा वो मिट्टी निकला,
जिसको पीतल समझा वो हीरा निकला।
जीवन क्या है पानी का बुलबुला,
मुझसे पूछा  जाता तो में क्या बोलूँ,
कैसे बीत गए दिन सारे,
अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूँ।

 सोच रहा हूँ क्या खोया क्या पाया मैंने
कैसे बीता जीवन मेरा,
यह सोचता हूँ ।
फिर भी जीवन क्या है,
यह समझ नहीं पाता हूँ।।

                                                 ।।गरिमा।।

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