साहित्य चक्र

07 April 2019

तन्हाई

चलता चला जा रहा हूँ
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अपनी तन्हाई को यूँ ही छुपा लेता हूँ मैं 
अपने दिल को यूँ ही सपने दिखाकर बहला लेता हूँ मैं
उदासी छाई थी, पल भर के इस जीवन मैं 
दूसरों की हंसी देख खुश हो लिया इस जीवन में 
हँसी दिखाकर गमों को छुपा लिया मैंने 
कुछ पाकर भी सबकुछ खो दिया मैंने
दूसरों को रोता देख, खुद टूट गया मैं 
राही को रास्ता दिखा खुद चलता चला गया मैं
चलते - चलते बहुत दूर निकल गया मैं
पीछे मुड़कर देखा तो सबकुछ छोड़ चला मैं
ना सुकून है, ना चैन है।

फिर भी घड़ी की सुई के साथ चलता जा रहा हूँ मैं
रास्ते वही हैं, जाना वहीं है, फिर भी भटकते चला जा रहा हूँ मैं
अपनी तन्हाई को यूं ही छुपा लेता हूँ मैं 
अपने दिल को यूं ही सपने दिखाकर बहला लेता हूँ मैं 
याद करके अपनों को अकेले रो लेता हूँ मैं 
एक छोटी सी मुस्कान दिखाकर सबकुछ छुपा लेता हूँ मैं 
दिन वही हैं, रातें वही हैं फिर भी  बदलाता चला जा रहा हूँ मैं 
अपनी ही माटी को भूलता जा रहा हूँ मैं
हँसते हैं लोग मुझपर 
शायद भटकते चला जा रहा हूँ मैं 
लोगों को क्या पता कितने रास्ते पार कर चला जा रहा हूँ मैं...?


                                                   ।।राहुल सिंह।। 


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