साहित्य चक्र

20 September 2017

* सुंदरता मेरी...।



सारी सृष्टि सुंदर है...।
सुंदरता मुझ में समाई है..।।

तन सुंदर है, मन सुंदर है...,
शीतलता नैनों में उतर आई है..।।

दूर गगन के तारों में..., 
एक तारा अपना - सा लगता है..।

कल्पनाओं के सागर में..., 
मन दूजा सा लगता है..।।

                                                       * नूतन शर्मा*

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