साहित्य चक्र

09 September 2017

*माँ*



माँ है तो श्री है, आधार है क्योंकि, प्रकृति, 
धरती एक माँ का ही तो प्रकार है । 

माँ है तो आसक्ति है क्योंकि, 

माँ में ही तो असीम शक्ति है। 

 माँ है तो त्याग है, बलिदान हैं क्योंकि, 

माँ में सिमटा एक बच्चे का पूरा जहान है। 

 माँ वो है जो खुद मिटकर एक बच्चे को बनाती है क्योंकि, 

पत्थर पर पिसकर ही हिना रंग लाती है ।

माँ है तो परिवार है, संस्कार है, क्योंकि, 

केवल माँ में ही तो ममता है, प्यार है, दुलार है ।

माँ है तो जन्म है, बचपन है, लोरी है क्योंकि, 

माँ की ममता एक रेशम की डोरी है । 

माँ है तो कृष्ण, है राम है, बलराम भी है क्योंकि, 

माँ के बिना असम्भव इन्सान तो क्या भगवान भी है । 

 माँ है तो दादी है, नानी है और, एक बालक के बिना,

 माँ भी एक अधूरी कहानी है। 

 माँ है तो सबका बचपन अनूठा, निराला है, 

क्योंकि माँ ही तो हर बच्चे की प्रथम पाठशाला है।

एक माँ की बस यही कहानी है,

 उसके आँचल में दूध और पाँव में जिंदगानी है। 

 माँ और माटी का सदियों पुराना नाता है, 

इन दोनों की हस्ती को चाहकर भी भला कौन मिटा पाता है, 
एक जाननी है तो दूसरी मातृभूमि भारत माता है। 

                            लेखिका- विदुषी शर्मा 

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