साहित्य चक्र

09 September 2017

*औरत*



औरत की इज्जत, उसकी आवर,
उसकी अस्मिता का लुटते जाना,
वो सरे बाजार उसका दुपट्टा खींचना
वो चीख, वो पुकार..
वो बंद दरवाजों का व्यापार,
वो हिंसा - वो अत्याचार
वो देह और आत्मा का होना तार-तार 
वो डर, वो संकोच, वो शर्म
क्यों हुआ..? क्या हुआ..? कैसे हुआ..?
क्या अब यहीं है मेरी पहचान..?

                                                                         # नूतन शर्मा #

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