जीवन के लिए
सत्य की अनुभूति
चेतना पर विचारों का बोझ !
सुख की खोज में
भटकता मन.....।
कुछ और की चाह में हम,
सोचते अधिक हैं
जीते कम है हम..।
मन की कैद में,चेतना का पँछी,
मनन चिंतन में लीन छटपटाता हर पल
पर, मन के भीतर..।
मन की मजबूत दीवारें अटूट !!
न समाधान न मुक्ति मन की
निराशा,हताशा, अतृप्ति
किंतु मन की उलझनों से दूर
मन से पार जाकर..।
परमात्मा का ध्यान
परमेश्वरीय आविर्भाव!!
जहाँ कुछ भी स्पर्श नही होता
जहाँ अहंकार नही,
मौन एकदम..।
मन का मौन !!
जहाँ चेतना विचारों से मुक्त
अपने स्वरूप को ढूंढती हुई
लौट आती है..।
आकाश सी असीम होकर
जीवन को नव रूप,
स्वरूप देती हुई.......।
उधार के ज्ञान से मुक्त करती
हुई,
अपने आप को.....।।
*सुशीला राजपूत*
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