साहित्य चक्र

23 September 2017

* आजाद हिंद फौज के 'बोस'

                 


देश की आजादी में कई महापुरूषों ने अपना - अपना योगदान दिया..। इन्हीं में से एक है राजा महेंद्र प्रताप सिंह जिन्होंने देश की आजादी के लिए एक सेना का गठन किया। यानि एक फौज बनाई जिसका नाम - "आजाद हिंद फौज" रखा गया। 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में इसकी स्थापना की गई। मूलत: यह "आजाद हिंद सरकार" थी। जो अग्रेजों से लड़ने के लिए बनाई गई थी। वैसे आपको बता दूं..। "आजाद हिंद फौज" नाम से रामबिहारी बोस ने जापान के टोकियो में 1942 में एक सेना भी बनाई थी। जिसमें 40 हजार से भी ज्यादा भारतीय स्त्री-पुरूष काम करते थे। जिनका मकशद भी देश को आजादी दिलाना था।   



सन् 1943 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस को 'आजाद हिंद फौज' का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त किया गया...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' की पूरी कमान बोस के हाथों आ गई...। सन्- 1942 में भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए 'आजाद हिंद फौज' या 'इंडियन नेशनल आर्मी' सशस्त्र सेना का गठन किया गया...। इसकी स्थापना 'राम बिहारी बोस' द्वारा जापान के टोकियो में की गई...। इस फौज में  शुरूआती दिनों में जापान द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में बंदी बनाए गए...। भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया...। धीरे-धीरे इस फौज में बर्मा और मलाया से भी भारतीय स्वयं सेवक भी भर्ती किए गए...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' एक विशाल सेना बनने लगी...। सेना के गठन के ठीक एक वर्ष बाद सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में रेडियो से घोषणा की....। अंग्रेजों से यह आशा करना मूर्खता भरा है...कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे..। इसलिए हम भारत के अंदर और भारत के बाहर से भी स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए...। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 'आजाद हिंद फौज' ने कई युद्ध लड़े और देश की आजादी में एक अहम भूमिका भी निभाई..। सुभाष चंद्र बोस जानते थे...कि अगर अंग्रेजों को चारों तरफ से घेरा जाए तो तभी आजादी संभव है...। 4 जुलाई 1943 से बोस 'आजाद हिंद फौज' की कमान संभाल रहे थे...। इनके नेतृत्व में 'आजाद हिंद फौज' ने जापानी सेना के साथ कई अहम युद्ध जीते...। 'आजाद हिंद फौज' को जापान सरकार को जो साथ मिले वो अपने-आप में काबिले तारीफ है...।  हां...! जीत तो नहीं मिल.. पर अंग्रेजों के दांत जरूर खट्टे कर दिए...। 5 जुलाई 1943 को 'सिंगापुर' के 'टाउन हॉल' से 'सुप्रीम कमांडर' के रूप में सेना संबोधित करते हुए...। सुभाष चंद्र बोस ने 'दिल्ली चलो' की नारा दिया...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' ने जापानी सेना के साथ मिलकर पूर्वी भारत में मोर्चा निकला..। जिसमें इंफाल सहित बर्मा, कोहिमा शामिल थे..। 


21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद फौज' के सर्वोच्च प्रधान सेनापति की हैसियत से सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्र भारत में अस्थायी सरकार का गठन भी किया...। जिसे जर्मनी, चीन सहित इटली, जापान जैसे देशों ने मान्यता भी दी..। जापान ने अस अस्थायी सरकार को अंडमान व निकोबार द्वीप भी दे दिए..। सुभाष चंद्र बोस ने इन द्वीपों का नामाकरण कर अडंमान- शहीद द्वीप, निकोबार-स्वराज द्वीप रखा..।  30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतंत्र भारत का ध्वज भी लहराया गया..। 





आपको बता दूं..। 6 जुलाई 1944 को रंगून के रेडिया स्टेशन से सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के नाम एक प्रसारण किया...। जिसमें उन्होंने 'आजाद हिंद फौज'  के लिए शुभकामनाएं मांगी थी...।  21 मार्च 1944 को 'दिल्ली चलो' नारे देते हुए...जापान से दिल्ली के लिए रवाना हुए..। अपने इस मिशन में बोस कामयाब नहीं हो पाए...। अंग्रेजों द्वारा  'आजाद हिंद फौज' पर आक्रमण कर दिया गया...। वहीं जापान, जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध से हटने का फैसला कर लिया...। जिसके कारण  'आजाद हिंद फौज' को वापस जापान लौटना पड़ा...। 22 सितम्बर 1944 को 'शहीदी दिवस' को मौके पर सुभाष चंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फौज' को संबोधित करते हुए कहा...।



"हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है
 तुम मुझे खून दो... मैं तुम्हें आजादी दूंगा, 
 यही ं स्वतंत्रता की देवी की मांग है"...।।



शायद ही आप जानते होगें...। सुभाष चंद्र बोस एक उग्र राष्ट्रवादी नेतृत्व करने वाले महापुरूष थे..। बोस फासीवादी अधिनायकों से अधिक प्रेरित थे..। वो भारत को शीघ्र ही आजाद कराना चाहते थे..। इसीलिए उन्होंने 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की..।  'आजाद हिंद फौज' की संख्या लगभग 40 हजार से भी ज्यादा थी...। 'आजाद हिंद फौज' की पूर्ण जानकारी किसी भी इतिहासकार को पता नहीं है..। 
सिंगापुर ने 'आजाद हिंद फौज' के शहीदों की याद में एस्प्लेनेड पार्क में 'आईएनए मेमोरियल' भी बनाया था...। जिसे ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा ध्वस्त कर दिया गया..। 8  जुलाई 1945 में सुभाष चंद्र बोस ने इस स्मारक में जाकर सभी शहीदों को श्रदांजलि दी...। सन्- 1995 में सिंगापुर सरकार ने इस धरोहर को एक बार फिर स्थापित करके शहीदों को याद किया...। जिसमें भारतीय समुदाय के लोगों ने भी एक अहम भूमिका  निभाई..।
इस स्मारक में तीन शब्द लिखें  थे..। 

1) इत्तेफाक़ (एकता),  2) एतमाक (विश्वास), 3) कुर्बानी (बलिदान)



                                                      रिपोर्ट- दीपक कोहली                                            

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