साहित्य चक्र

20 September 2017

* कह रही बांसुरी मोहन से *



जाने कब से हूँ लालायित,
कह रही बंशी मोहन से।
मैं तेरे अधरों की प्यासी हूँ,
कह रही बांसुरी मोहन से।।

माखन - चोरी में चतुर कृष्ण
तू बना लाडला मोहन है ।
वृन्दावन में रास रचाता ।
तू बना साँवरा सोहन है ।
तेरे ही सँग तो हांसी हूँ ।
कह रही बॉसुरी मोहन से ।।

 अम्ब यशोदा का सुत प्यारा ।
तू पाता अमृत सारा है ।
मीराके भजनोंमें बसकर ,
भक्तों से हरदम हारा है ।
मैं भी तेरी ही दासी हूँ ।
कह रही बॉसुरी मोहन से ।।

 पूतना कंस सबको तारा ।
है तूने ही बेडा पार किया ।
पढा महापुराण गीता को ,
है अर्जुन का उद्धार किया !
तेरे बिन हुई उदासी हूँ  ।
कह रही बांसुरी मोहन से ।।

                          आरती लोहनी

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