काल्पनिक जगत में बैठा रावण बहुत सालों से सीता माता के अपहरण का पाश्यताप करने भगवान श्री राम के मंदिर आना चाहता था। हर साल वह पृथ्वी पर आने की सोचता, जहां महिलाओं और बालिकाओं की इज्जत करना सिखाया जाता है, लेकिन हर बार यही सोच कर रुक जाता है कि पृथ्वी के लोगों के दिलों में उसके लिए बहुत नफरत भरी हुई है। प्रत्येक वर्ष भारत के हर गाँव तथा हर शहर में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है।
इस साल रावण ने मन बना ही लिया था कि अब और सहन नहीं होगा कि पृथ्वी के लोग उससे इतनी नफरत करें। इसलिए उसने भगवान राम से क्षमा मांगने और अपने पापों का प्राश्चित करने के लिए पृथ्वी जाने का फैसला कर लिया था।
आखिर निर्णय के बाद जब रावण, भगवान श्री राम की धरती पर विजयादशमी के दो दिन पहले आया तो उसने देखा कि यहाँ के लोग अलग-अलग तरह के हैं। रावण ने लोगों के हंसते हुए चेहरे देखे, मंदिरों में बैठे भूखे लोगों को खाना खिलाते हुए देखा, पक्षी आसमान में उड़ रहे हैं, कुछ लोग गाय चरा रहे हैं, कुछ लोग उसके यानी रावण के पुतले बना कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं, कुछ लोग योग कर रहे है, तो कुछ बार में बैठकर नशा कर रहे हैं।
थोड़ी दूर चलते-चलते उसने देखा कि कुछ लोग एक छोटी बच्ची जो खून से लथपथ है उसे लेकर अस्पताल की तरह दौड़ रहे हैं। वह भी उन लोगों के पीछे-पीछे दौड़ा और कुछ देर में पता चला कि लड़की मर चुकी है। आस-पास के लोग बातें कर रहे थे कि लड़की का बलात्कार और रेप कर उसे मारने की कोशिश की गई थी।
रावण यह दृश्य और घटना को देखकर अंदर से टूट गया और तुरंत वहां से रवाना हो गया। कुछ दूर चलने के बाद उसने देखा कि एक आदमी शराब पीकर अपनी पत्नी को मार रहा है और उससे पैसे मांग रहा है। एक बाप अपनी 8 वर्ष की बेटी को इसलिए मार रहा है क्योंकि उसने पेंसिल के लिए दो रुपये मांग लिए थे।
वहीं थोड़ी आगे चलकर रावण ने देखा कि एक परिवार अपनी बहू को इसलिए मार रहा है कि उस लड़की के पिता ने अच्छा दहेज नहीं दिया था और एक झाड़ी में दो दिन की एक मासूम बच्ची फेंकी हुई थी।
यह सब देख रावण! जो एक दिन पहले पृथ्वी पर आया था, और आज इधर-उधर सुकून की तलाश में भाग रहा था। पृथ्वी पर चारों तरफ अत्याचार-शोषण देख रावण को पृथ्वी पर खुद से बड़े रावण दिखाई दे रहे थे, जो अत्याचार, शोषण और घृणा से भरे हुए थे। पृथ्वी की हालत देख रावण यहाँ एक मिनट भी नहीं रुकना चाहता था। मगर विजयादशमी के दिन वह पृथ्वी के लोगों द्वारा अपने पुतलों का दहन करता देखना चाहता था।
शाम हुई और रावण ने देखा कि जो लोग महिलाओं पर अत्याचार, व्यापार में धोखाधड़ी, बच्चियों की हत्या, नशे में चूर रहा करते थे, वहीं आज रावण के पुतले जला रहे थे और बुराई के नाश के लिए सबसे आगे खड़े थे। और जिन महिलाओं पर अत्याचार हो रहा था, आज वो भी रावण के पुतलों के दहन पर खुश हो रही थीं। रावण दहन के बाद लोग खुशी-खुशी अपने घर जा रहे थे।
रावण अभी भी वहीं मैदान में बैठा-बैठा सोच रहा है कि जिस पृथ्वी को मैं स्वर्ग मान रहा था। वहां के लोगों पर तो बलात्कारी, अत्याचारी, हत्यारा, हिंसक और धोखाधड़ी, जालसाजी के दाग लगे हुए हैं। इनसे तो मेरा दाग अच्छा है, मैंने सीता माता का अपहरण किया, मगर उन्हें छुआ भी नहीं था।
अपने दिमाग में पृथ्वी की नकारात्मक छवि लेते हुए रावण भगवान राम के दर्शन किए बिना ही काल्पनिक जगत की ओर लौट निकला।
- दीपक बारूपाल

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