चलो काम शुरू करते हैं
नए जोश और उत्साह के साथ,
खो जाएं, डूब जाएं, कल्पनाओं के दरिया में,
गहरी डुबकी लगाएं शब्दों के आगोश में,
क्या पता हाथ लग जाएं।
कोई काम का मुद्दा,
बहस शुरु हो जिस पर
चौपाल और चौहटे बाज़ार में
हर खामोश ज़ुबान पर,
शायद रौनक आ जाएं।
तैरने लग जाएं तर्क और वितर्क
मूक वधिर होंठ बोलने लग जाएं
नए उत्साह के साथ
जोश और होश चल पड़े ,
अच्छी शुरुआत से संपन्न होता है।
आधा काम,
कितना दम है इस कहावत में,
समय आ गया है इसको
निकष पर परखने का,
नए जोश और उत्साह के साथ,
आओ करते हैं शुरुआत
नए काम की।
- बाबू राम धीमान
*****
ज़िन्दगी का सफर
चंद लम्हों की ख़ुशी को संभाले कैसे रखे,
टूटे दिल की खामोशी को रज़ा कैसे करे।
सपनों की तामीर में बिखरे हैं हज़ारों शिकवे,
इन अधूरी तम्मनाओं को रिहा कैसे करे।
टूटे ख़्वाबों की चुभन पूछती है हर रात,
इन नमी भरी आँखों को रज़ा कैसे करे।
सपनों की तामीर में बिखरे हज़ारों शिकवे,
इन अधूरी तमन्नाओं को रिहा कैसे करे।
मंज़िलें तो दूर हैं और सफ़र भी तन्हा,
इस थके मुसाफ़िर को कोई आसरा कैसे करे।
दिल के सहरा में हवाएँ भी नहीं चलती अब,
इस सुकून के रेगिस्तान को हरा कैसे करे।
रात के दामन में छुपी सौ ग़म की कहानी,
इन अंधेरों से उजालों का सिलसिला कैसे करे।
हर तरफ़ शोर है दुनिया के बाज़ारों में,
अपने जज़्बात को दिल से सदा कैसे करे।
वक़्त की गर्दिश में बिखर जाती है हर याद,
इस उदासी को ख़ुशी की दुआ कैसे करे।
जिसने छोड़ा है हमें बेवफ़ाई के लिए,
उस निगाहों को फिर से वफ़ा कैसे करे।
ज़िंदगी की इस ग़ज़ल में है सदा दर्द-ओ-सुकून,
"शशि" दिल की ख़ामोशी को रवाँ कैसे करे।
- शशि धर कुमार
*****
तृप्त कर
आँखें नम, मायूस मन
उतरा चेहरा, लड़खड़ाता पाव
क्या हुआ, जा रहे हो।
तलाश में हो, जो जा रहे हो।
प्लीज़ बोलो ना
क्या चाह रहे हो ?
जिद्दी हो, पागल हो,
आवारा हो, नहीं नहीं
मासूम हो, व्याकुल हो,
दीवाना हो, अब खुश।
कुछ तो बोल, मुँह तो खोल!
ऐ मेरे यार, है तुझसे प्यार
रूठें हो, मनाऊ क्या ?
आगोश तेरे, समाऊ क्या ?
रे ख़ामोशी, चल भाग जा
रे गुमशुदा तू दिल में आ
ये दिल ही मेरा, घर बार है तेरा
ना सोच कुछ, ए नासमझ
जो दिख रहा है, सबकुछ तेरा
हाँ! सबकुछ तेरा
तू याद कर, तनिक प्यार कर
कर बंद आँखें, ले ले आगोश
होके खामोश, महसूस कर
कर शुरू आलिंगन
मुझे तृप्त कर, मुझे तृप्त कर।
- राघवेंद्र प्रकाश 'रघु'
*****
वो दिन कहाँ गए,
जब मिट्टी की सौंधी गंध
मन की थकान हर लेती थी।
आँगन में तुलसी चौरा,
गोबर से लिपी ज़मीन पर
संध्या की दीपशिखा झिलमिला उठती थी।
गाँव की कच्ची गलियों में
बच्चों की किलकारियाँ
जैसे किसी लोकगीत की धुन,
और बैलों की घंटियों की टुनकार
प्रकृति का मधुर वाद्य बन जाती थी।
नदी के किनारे की शीतल बयार,
पीपल तले बुजुर्गों की गोष्ठी,
धान की बाली संग झूमता मन
सब आत्मा को पावन कर जाता था।
अब कंक्रीट की दीवारों के बीच
न वो हरियाली, न वो अपनापन,
भीड़ के शोर में घुटती है आत्मा,
और कृत्रिम रोशनी में खो गया है
चाँदनी का सुकून।
गाँव की माटी में जो सहज पवित्रता थी,
वो शहरों की हवा में कहाँ मिलती है।
मन चाहता है-
फिर लौट चलें उन पगडंडियों पर,
जहाँ जीवन सरल था,
और हृदय हर पल निर्मल।
- मधु शुभम पाण्डे
*****
प्रेम की राह में
मैं तुम्हें ढूंढने प्रेम की राह में,
रोज़ आता रहा रोज़ जाता रहा
तुम टकटकी लगाए मुझको तकती रही,
मैं भी देख तुम को मुस्कुराता रहा।
मैं तुम्हें ढूंढने प्रेम की राह में...
तू सादगी की कोई पवित्र मूरत है
प्रेम की मुस्कुराती एक सूरत है
तेरे अधरों पे आई उस मुस्कान को
मैं शब्दों से अपने सजाता रहा।
मैं तुम्हें ढूंढने प्रेम की राह पर...
तू तारों में चमकता एक चांद है
मोहब्बत की प्यारी सी पहचान है
तेरी आंखों से झलकते इस प्रेम को
मैं आंखों में अपनी सजाता रहा।
मैं तुम्हें ढूंढने प्रेम की राह पर...
- आकाश आरसी शर्मा
*****
और क्या चाहिए
दिल दुआ ना दवा चाहिए,
बस सुकूँ भरी कुछ हवा चाहिए!
किससे मांगूँ जाकर मुरादें अपनी,
इबादत को भी तो खुदा चाहिए!
हुनरमंद हो तुम ये मान लूँ कैसे,
मन को जो भाए वो अदा चाहिए!
दास्तां सुनायूँ किसे दर्द ए दिल की,
लोगों को इसमें भी मज़ा चाहिए!
चैन छीनने का जुर्म कर बैठे हो तुम,
अब तुम्हीं बताओ क्या सज़ा चाहिए!
इश्क़ करना कोई गुनाह नहीं साहिब,
प्यार में फ़क़त एक वफ़ा चाहिए!
तुम जो मिले तो सब मिल गया जैसे,
मुझे इस ज़िंदगी से और क्या चाहिए।
- आनन्द कुमार
*****
याद आती है वो छुवन,
जब बादल ने धरा को चूमा था,
लहलहा उठी थी धरती,
सिहर सी गयी थी,
जब हवाओं ने उसे छुआ था।
कहने को तो तुम दूर बहुत हो,
पर तुम्हारी यादें
हर पल मुझे छूती जाती हैं,
जैसे कोई अनदेखा स्पर्श
मन के तारों को हिलाता हो।
अंकित हृदय पर आज भी
आंखों का स्पर्श,
जब तुमने देखा था।
- सविता सिंह मीरा
*****
हार जीत तो लगा रहेगा!
हार जीत तो लगा रहेगा
जीवन के इस भाग दौड़ में
उठो अश्रु पोछो अब तुम्हें
नया भारत बनाना होगा
सत्य अहिंसा और त्याग का
अब तो बिगुल बजाना होगा
प्रण लो अपने मन में
उन्नत भारत बनाना होगा।
- मनोज कौशल
*****
गरीबी यूँ मिट जायेगी
अरसा बीत गया,
गरीबी मिट न पायी,
अभियान बहुत चलाए,
बदनसीबी मिट न पायी,
भाषा बदली, परिभाषा बदली,
करीबी मिल न पाए,
तरीका ऐसा मिला नहीं,
गरीबी जो हर जाए,
चिंतन हुआ, मनन हुआ,
“गरीबी कैसे भगाएं
विचार तभी अमूल्य आया,
गरीब को मिटा दो,
गरीबी खुद मिट जाए,
खाना इतना महंगा कर दो,
वो खा ही न पाए,
तड़प-तड़प भूख से प्राण छोड़ जाए,
समस्या हल हो जायेगी,
गरीबी यूँ मिट जायेगी।
- धरम चंद धीमान
*****
सीर गंगा की महिमा
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे
तू है सदा हमारे अंगे-संगे
घुमारवीं बसेया तेरे तीर पर
जन-जन टिकेया तेरे नीर पर
भरोसा करें तेरे ख्वाजे पीर पर
सबका हित है तेरे ही संगे।
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे
तू है सदा हमारे अंगे-संगे
पूजा का कचरा तुझ में डाले
पापों की गठरी तू ही सम्भाले
तू ही पाले, तू ही जाले
तेरे तट पर मोक्ष पाएंगे
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे
तू है सदा हमारे अंगे-संगे
तेरे धान के रोपे उजाड़ पाये
खेतों के हार शहर बनाये
किसान सारे डिपुए पुज्वाये
बैल नमाणे सड़कें भगाये
विनास के मॉडल कब तक घलेंगे
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे
तू है सदा हमारे अंगे-संगे
नर्म महीन छैल-सा आटा
पिसता था सीर गंगा दे घराटा
बिजली-चक्की से अब सबका नाता
अट्टे में विटामिन नहीं अब पाएंगे
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे।
तू है सदा हमारे अंगे-संगे
सीरगंगा के तट पर आदिम आया
पत्थर तराश कर संस्कृति रचाया
विकास का अर्थ हमको सिखाया।
पर उत्खनन ने ऐसा गदर मचाया
विरासत का हमारी किया सफाया
सीर-कृपा से मैं कुछ को बचाया।
पेलियो में उनका दर्शन करेंगे
ओ सीर गंगे, माए सीर गंगे
तू है सदा हमारे अंगे-संगे।
- डॉ. ए.आर. सांख्यान
*****
जरूरत और अंजाम
आज इंसान को इंसान से प्यार नहीं,
झूठी मुहब्बत के कई नकाब लगाए बैठे हैं।
चेहरे पर तो सजी है फरेबी हंसी ,
दिल में नफरत की दुकान सजाए बैठे हैं।
इक नूर से सब जग उपजा है कोई मंदा बड़ा नहीं
इस संदेश को भी हम सब मन से भुलाए बैठे हैं।
एक ही रंग सबके लहू का ये भी अलहदा नहीं,
इस सत्य को हम सब दिल से भुलाए बैठे हैं।
मुहब्बते उसूल सब भूल गए हैं खुदा के,
आज सब खुद ही साहिबे मसनद बने बैठे हैं।
गुरुओं पीरों पैगंबरों ने दी थी जो प्रेम की सीख,
उसको हम सब अब दिल से भुलाए बैठे हैं।
दो रोटी और दो गज जमीन के मोहताज हैं सब,
इस जरूरत और अंजाम को सब भुलाए बैठे हैं।
- राज कुमार कौंडल
*****
क्या चाहते हो जीना भूल जाऊँ।
मतलब जहर पीना भूल जाऊँ?
हाड़ तोड़ते रहे दिनभर तपती धूप में,
अब क्या चाहते हो पसीना भूल जाऊँ।।
लूटते रहें अस्मत जिसकी आड़ में,
बस वही परदा झीना भूल जाऊँ।।
कटे पर नमक छिड़क रहें हो क़्यूँ,
क्या ज़ख्मों को सीना भूल जाऊँ।।
लाके मझधार में पहले डुबोया वो,
फिर कह रहा सफीना भूल जाऊँ।।
- राधेश विकास
*****
जंग में लड़ाई की
कॉलेज में पढ़ाई की।
परीक्षा में कड़ाई की
आटे में मड़ाई की
बहुत जरूरी है।
सूखे में बरसात की
नीद में रात की
शादी में बारात की
खाने में दाल भात की
बहुत जरूरी है।
जूते चुराई में साली की
तिलक,विवाह में गाली की
रेस्टोरेंट में थाली की
महफ़िल में कव्वाली की
बहुत जरूरी है।
चुनाव में बैलेट पेपर की
साहित्य में लिटरेचर की
प्रापर्टी में सिग्नेचर की
गैस में रेगुलेटर की
बहुत जरूरी है।
गांव में 24 घंटे लाइट की
फौज में हाइट की
यात्रा में फ़्लाइट की
बसंत पंचमी में काईट की
बहुत जरूरी है।
जात पात से आजादी की
जनसंख्या नियंत्रित आबादी की
इन्टर कास्ट शादी की
कहानी सुनने के लिए दादी की
बहुत जरूरी है।
- सदानंद गाजीपुरी
*****
No comments:
Post a Comment