आज के डिजिटल युग में संवाद की परिभाषा बदल चुकी है। एक क्षण में संदेश दुनिया के किसी भी कोने तक पहुँच सकता है, परंतु इस तीव्रता के साथ भावनाओं की गहराई कहीं पीछे छूट गई है। विश्व डाक दिवस हमें उस दौर की याद दिलाता है जब चिट्ठी का आना केवल सूचना नहीं, बल्कि आत्मीय अनुभव हुआ करता था। लिफ़ाफ़े, पोस्ट कार्ड और अंतर्देशी में लिखा हर शब्द रिश्तों की ताप और प्रतीक्षा की मिठास से भरपूर होता था। डाकिए की सायकल की घंटी सुनते ही मन में उत्सुकता और धड़कन तेज़ हो जाती थी।
उस पत्र के अक्षरों में माँ की ममता, पिता की चिंता, प्रिय दोस्त की यादें या प्रियतमा का प्रेम सजीव हो उठता था। चिट्ठी लिखना एक कला थी, जिसमें भावनाओं को शब्द देने से पहले दिल की गहराइयों में उतरना पड़ता था। लोग पोस्ट बॉक्स तक जाते हुए भी एक अनोखा आनंद महसूस करते थे, और पत्र के उत्तर का इंतज़ार करते हुए दिनों और हफ़्तों में जीते थे। यह प्रतीक्षा ही चिट्ठियों की सबसे सुंदर विशेषता थी, क्योंकि हर उत्तर में भावनाओं का निवेश हुआ करता था। आज संवाद तेज़, आसान और सतही हो गया है। मोबाइल स्क्रीन पर टाइप किए गए संदेश तुरंत भेजे जाते हैं, पर महसूस नहीं किए जाते।
इमोजियों और त्वरित प्रतिक्रियाओं ने शब्दों का वह स्पर्श छीन लिया है, जिसमें आत्मीयता बसी होती थी। डाक दिवस हमें चेताता है कि संवाद का मूल्य केवल उसके समय और गति में नहीं, बल्कि उसकी आत्मा में है। वह आत्मा अब भी कागज़, कलम और स्याही की तिकोनी संगति में सबसे अधिक जीवित है। पुरानी चिट्ठियाँ चाहे पीली पड़ गई हों, उनकी स्याही चाहे धूमिल हो गई हो, मगर उनमें जिन भावनाओं की छाप है, वह समय के किसी भी प्रवाह से मिट नहीं सकती।
यही वह धरोहर है जिसे हमने सुविधा की दौड़ में खो दिया है। इस दिन का असली संदेश है कि हमें फिर से रिश्तों को शब्द देने की परंपरा को जीवित करना होगा। किसी प्रियजन को अपने हाथों से कुछ पंक्तियाँ लिखना, यादों और संबंधों को पुनर्जीवित करने का सबसे सरल और सशक्त माध्यम है। चिट्ठियाँ केवल पत्र नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों को एक गहरी और स्थायी अभिव्यक्ति देती हैं।
स्क्रीन और संदेशों की त्वरित दुनिया में भी यह ज़रूरी है कि हम समय निकालकर धीमे, सच्चे और गहरे संवाद को चुनें। डाक दिवस हमें स्मरण कराता है कि भावनाओं का आदान-प्रदान हर युग में संभव है, बस हमें उन्हें सहेजने और लिखने का मन होना चाहिए। चिट्ठियों का दिया गया स्नेह कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि वह दिल से लिखा जाता है और दिल में ही सुरक्षित रहता है।
- डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह
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