साहित्य चक्र

10 October 2025

साहित्य की कसौटी पर "प्रेमचंद"


"मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि प्रतिवर्ष 8 अक्टूबर को मनाई जाती है। इस दिन उनके साहित्यिक योगदान और सामाजिक विचारों को सम्मानित करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। मुंशी प्रेमचंद को हिंदी साहित्य में "उपन्यास सम्राट" के रूप में भी जाना जाता है और उनकी कहानियां व उपन्यास आज भी प्रासंगिक और अमूल्य हैं।

हिंदी साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद्र एक ऐसी प्रखर प्रतिभा हैं, जिनके साहित्यिक योगदान ने भारतीय जीवन के प्रत्येक पक्ष को स्पर्श किया। 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही गाँव में जन्मे धनपत राय श्रीवास्तव ने ‘प्रेमचंद’ नाम से हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में लेखन किया। उनके बाल्यकाल की कठिनाइयाँ, गरीबी, माता-पिता की असामयिक मृत्यु और जीवन के संघर्षों ने उनकी लेखनी को समाज के यथार्थ से जोड़ दिया।




वे प्रारंभिक शिक्षा के बाद अध्यापन एवं अन्य नौकरियों में लगे, पर अंततः साहित्यिक रचनाओं की ओर उनका लगाव उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की ऊँचाई तक ले गया। प्रेमचंद का साहित्य सन् 1900 के दशक के आरंभ में उर्दू भाषा से शुरू हुआ, आगे चलकर उन्होंने हिंदी को अपना माध्यम बनाया। उनका प्रथम हिंदी उपन्यास ‘सेवासदन’ (1918) वेश्यावृत्ति और महिला उत्पीड़न की सामाजिक चुनौतियों को उजागर करता है वहीं ‘प्रेमाश्रम’ (1922) किसान आन्दोलनों और जमींदारों के शोषण पर केंद्रित है।

‘‘रंगभूमि’’ में सूरदास जैसे अंधे पात्र के माध्यम से समाज के विरोधाभासों को दर्शाया गया है, जबकि ‘गोदान’ भारतीय ग्राम्य जीवन का यथार्थवादी दस्तावेज है और ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, ‘निर्मला’ आदि उपन्यासों ने दहेज, अनमेल विवाह, जातिभेद, छुआछूत, विधवा जीवन, सामाजिक भेदभाव, और आर्थिक शोषण पर करारी चोट की। तीन सौ से अधिक कहानियाँ, अनगिनत निबंध, आलोचनात्मक लेख, संपादकीय, और पत्र लेखन में अपनी लेखनी की धार को परखने वाले प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन स्वाधीनता संग्राम, समाज सुधार आन्दोलनों और प्रगतिशील लेखन की मिसाल बन गया।

उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका एवं ‘जागरण’ समाचार पत्र का संपादन किया, फिल्मों के लिये कथा लेखन किया और प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष बने। उनकी मुख्य रचनाएँ जैसे ‘कफन’, ‘पूस की रात’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘महाजनी सभ्यता’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘दो बैलों की कथा’ आदि हिंदी साहित्य को अमूल्य भेंट हैं, जिनमें जीवन की सच्चाई, संघर्ष, सहानुभूति तथा संवेदनशीलता का ताना-बाना है। प्रेमचंद के अनुसार साहित्य का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन न होकर सामाजिक परिवर्तन और सुधार भी है, अतः उन्होंने अपनी रचनाओं में वंचित, शोषित, पीड़ित और दलितों को स्वर दिया।

प्रेमचंद प्रभावशाली वक्ता, जागरूक नागरिक और गंभीर विचारक भी थे, उनका विश्वास समाज को बेहतर बनाने में साहित्य की भूमिका को लेकर अटल था। प्रेमचंद ने भारतीय समाज की जड़ताओं, समस्याओं और अंतर्विरोधों को कलम के माध्यम से उजागर कर साहित्य को जनजागरण का माध्यम बनाया तथा समत्व, करुणा और परिवर्तन की प्रेरणा दी। उनकी पुण्यतिथि पर उनके साहित्यिक, सामाजिक और वैचारिक योगदान को स्मरण करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि समाज के प्रति अपने दायित्व का पुनः बोध है, क्योंकि ‘प्रेमचंद युग’ बना रहना हिंदी साहित्य के लिए प्रगतिशील चेतना का अमूल्य स्रोत है।



- डॉ. मुश्ताक अहमद शाह



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