साहित्य चक्र

06 October 2025

प्रकृति और पेड़



आज हम बात करते हैं एक गांव की...  जो गांव नदी से लगभग 7 किलोमीटर दूर रचा बसा था। पैसों की लालच में गांव के लोग प्रकृति से खिलवाड़ करना शुरू कर दिए। वर्षों से नदी किनारे जमीन को खोदकर मिट्टी और रेत को बेचने मे मसगुल रहे.... और पैसों की कमाई में इतने अंधे हो गए कि लगातार यह कार्य को अनवरत जारी रखा। इस कार्य से जुड़े गांव के युवक खुश रहने लगे और रेत और मिट्टी को निकालने के क्रम मे जो भी पेड़ आए उसे काट कर बेचने लगे।







पेड़ भी कट कर कम होने लगे क्योंकि रेत निकालने के क्रम में पेड़ या तो मरकर सूख जाते या गिर जाते। नदी तट से सटे हुए हरा भरा छोटा सा जंगल जिसमें नीम, बबूल, पीपल आदि अनेक जंगली पेड़ हुआ करते थे जिसमें रंग बिरंगी तितलियाँ, पक्षियों का बसेरा... आदि प्राकृतिक छटा बसती थी। धीरे-धीरे नष्ट होने लगे।

 इधर गांव में लोग खुशहाली से अपना जीवन बसर विकासपूर्वक करने लगे। देखते देखते गांव में बहुत भव्य इमारतें बनने लगी और गांव भव्य भवनों से गुलजार हो गया।

 यह गांव प्रकृति और पेड़ों से खिलवाड़ करना प्रारंभ कर दिया था इसको देखते हुए एक बुजुर्ग ने यह कहना शुरू कर दिया कि यह गांव का सत्यानाश भी तय है। जिसे लोग पागल पागल कह कर चिढ़ाने लगे थे। जब-जब उस बुजुर्ग को चिढ़ाया जाता था वह बुजुर्ग और भी तेज चिल्लाता की सत्यानाश होने से इस गांव को अब कोई बचा ही नहीं सकता है।

 कुछ लोग कहते कि यह बुजुर्ग व्यक्ति बुजुर्ग बाबा सही कह रहे हैं लगता है इनको आभास हो गया है, फिर भी ऐसा कहने वाले एवं सोचने वालों की संख्या गाँव मे नाम मात्र थी। जिस बुजुर्ग को लोग पागल पागल चिढ़ाने मे लगे थे उस बुजुर्ग के दिनचर्या पर अगर हम प्रकाश डालें तो वह अनुकरणीय है।

 बुजुर्ग प्रतिदिन सुबह जगता.. अपने नाती राघवेंद्र को भी जगाता दोनों साथ में अपने हाथ में लाठी और खुरपी को साथ लेकर के नदी किनारे की तरफ प्रस्थान कर जाते। रास्ते में कहीं छोटे पौधे मिल जाते...जो की भविष्य मे पेड़/बृक्ष हो सकते थे उसी पौधे को वह अपने नाती के साथ खुरपी से आराम से निकालता और नदी के किनारे उसको वह लगा देता था।

 इसके बाद गंगा में स्नान करके वह बुजुर्ग अपने नाती के साथ छोटे पौधे को पानी देकर घर वापस हो जाते थे। पौधे को उधर ही लगाता था जिधर की गांव के ठेकेदार रेता माफिया लोग रेता एवं मिट्टी का खुदाई नहीं करते थे।






इस बुजुर्ग के इस कार्य से नदी से नजदीक एक छोटा सा जंगल तैयार हो गया जिसमे तरह तरह की पंछियों की चहचआहट शुरू हो गई..जंगली जानवरो हिरण,नीलगाय आदि का बसेरा होने के साथ साथ छोटे-छोटे खरगोश भी दिखने लगे।  रंग बिरंगी तितलियों की मौजूदगी मंन को शुकुन देने लगी.....जिसे देखकर बाबा और नाती दोनों खूब खूश रहने लगे।

 बुजुर्ग के इस पौधा लगाने के कार्य मे उसका जो नाती रहता था, बराबर पूछा करता था कि बाबा यह पेड़ पौधे हमलोग किस लिए लगा रहे हैं....बाबा बोलते थे कि बाबू इस गांव की भलाई इसी में है की नदी के किनारे से लेकर जितना दूरी तक गांव है जंगल के रूप में गांव में वृक्ष लगाया जाए तभी गांव बच पाएगा। वरना नदी जब अपने उग्र रूप में होगी कभी तो पूरा गांव तबाह हो सकता है।

 यह पेड़ पौधे ही कटाव से बचा पाएगा और यह बात किसी को समझ नहीं आ रहा है। तुम तो समझो तुम भी यह कार्य को करना.... छोड़ना नहीं..... नाती बोला.... हां बाबा हम भी अपने साथ एक पौधा जरूर कहीं ना कहीं से खोज के लाएंगे और आपके साथ लगाएंगे।दोनों हंसते हुए फिर रास्ते से घर वापस आ जाते।

 समय बीतता गया एक दिन अचानक शाम को उसका नाती दौड़े दौड़े आया और बोला बाबा बाबा हम लोगों ने जो पौधा लगाया था जो जंगल बसाया था उसको भी नष्ट कर दिया गया... वहां से भी रेत और मिट्टी की खुदाई बड़ी-बड़ी गाड़ियों द्वारा किया जा रहा है।

 बाबा अपने बेड पर बैठते हुए बोले....अब तो सत्यानाश इस गांव का निश्चित ही है... मग़र हम कुछ कर भी नहीं सकते..ठीक है सुबह चला जाएगा अपने कार्य पर... अभी गए तो रात हो जाएगी। सुबह रोज की तरह जग कर हाथ में डंडा खुरपी और अपने नाती को आवाज देते हुए बोला कि जो स्कूल से तुमको दो नीम का पौधा मिला है उसको ले लो आज हम लोग वही लगाएंगे.. चलो।

नाती बोला....जी बाबा हम आते हैं, और दोनों साथ चलेंगे। रास्ते में बुजुर्ग को कुछ लोग पगला बाबा पगला बाबा का कह कर चिढ़ाने लगे और जो नीम का पौधा लिए थे उसको मांगने लगे की दीजिए इससे हम लोग दातुन कर लेंगे दांत मजबूत होगा मेरा....आपका तो दांत भी नहीं है...बात को ना सुनते हुए बाबा अपने नाती के साथ सीधा चलते गए।





जिधर पेड़ को प्रतिदिन लगाया जाता था उधर जाते ही बुजुर्ग बाबा वहाँ का दृश्य देख कर अपना सर पड़कर बैठकर रोने लगे..... सभी पेड़ पौधों को रौंदते हुए वहाँ से भी रेत की बिक्री कर दिया गया था... यह दृश्य हृदय विदारक था.... जिसे देखकर बाबा कहने लगे कि अब तो इस गांव को सत्यानाश होने से कोई भी नहीं रोक सकता... पेड़ पौधे प्रकृति को नष्ट करना भारी पड़ेगा। जिस जंगल को अपने हाथों से सवारा था उसे दुष्ट मूर्खो ने चंद पैसो के लिए बर्बाद कर दिया।

परेशान बाबा को समझाते हुए कि.. बाबा हम लोग फिर से लगाएंगे पौधा फिर से बसाएंगे जंगल नाती समझाता रहा। फिर दोनों  नदी मे स्नान कर दो नीम के पौधे को लगाया और घर चल दिए। प्रकृति से खिलवाड़ प्रकृति को नुकसान और पेड़ पौधों को नस्ट करने के साथ-साथ इस मिट्टी की कटान और रेत को निकाल करके बेचने के लिए जो अंधे हुए हैं वह भी मरेंगे रास्ते मे ऐसा कहते हुए बाबा घर आ गए। 

कुछ दिन बाद बाबा कि मृत्यु हो गईं मगर वृक्ष लगाने का कार्य बाबा के कहे अनुसार उनका नाती राघवेंद्र का अनवरत जारी रहा। मात्र 6 माह बीतने के बाद बाद नदी अपने उग्र रूप में प्रचंड हुई..... नदी किनारे का कटाव और मिट्टी को जो निकाला गया था उसके कारण नदी का और भी प्रचंड रूप चकोह के साथ प्रारंभ हुआ.... और देखते-देखते जो गांव से नदी 7 किलोमीटर दूर थी वह पूरा गांव को अपने अंदर समाहित कर गई। पूरा का पूरा गांव आंखों के सामने बहने लगा.. बड़ी-बड़ी इमारतें....बड़े-बड़े स्कूल.. सड़क....सब कुछ नष्ट हो गया।

 तब वह बुजुर्ग की बातों को याद करते हुए एक नौजवान ने चिल्लाते हुए कहना शुरू किया कि  पगला बाबा ने ठीक कहा था की रेत और मिट्टी काटते रहोगे.....पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाते रहोगे.... प्रकृति से बेरुखी करोगे.... तो इस गांव का सत्यानाश तय है जो आज हो ही गया... नाश हो गया.. किए हमलोग थे भुगत हमसभी रहे है कहते कहते गला फाड़कर रोने लगा... रोने लगा। सीख: प्रकृति और पेड़ हमारे जीवन के सच्चे साथी हैं। नदिया अपने रास्ते कलकल बहती रहती है....प्रकृति से प्रेम ही आख़री रास्ता है जिसे हम सभी को समझना ही होग़ा। तभी भोजन, हवा और जीवन चलता रहेगा।


                                         - राघवेंद्र प्रकाश रघु




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