यह कहानी तीन भोजपुरी दोस्तों की है जो अलग-अलग शहरों से एक शहर में रहते हैं और काम करते हैं। कल्लू गोरखपुर से, भुअर छपरा से और रघु बक्सर से हैं जो दिल्ली एनसीआर की अलग-अलग कंपनियों में काम करते हैं। वे लगभग तीन साल से एक ही रूम में साथ रहते हैं और भोजपुरी बोलने वाले हैं, इसलिए उनकी दोस्ती और रूम पार्टनरशिप भी है। दिन भर ड्यूटी करने के बाद वे शाम को रूम पर आ जाते हैं। तीनों खुशमिजाज और मिलनसार हैं।
कंपनी से निकलने के बाद वे टेम्पो से अलग-अलग जगहों से एक चौराहे पर पहुंचते हैं और फिर तीनों लोग साथ होकर बस से अपने रहने वाले एरिया तक पहुंचते थे। यह उनकी रोज की दिनचर्या है। एक दिन चौराहे पर दो लोग पहुंच गए, लेकिन रघु को आने में देर हो गई।
कुछ देर बाद वह भी उदास दिखते हुए आता दिखाई दिया। कल्लू ने भुअर से कहा, "हरदम मुस्कराने वाले रघु को क्या हो गया है? वह उदास और धीरे-धीरे नीचे सर किए आ रहा है।"
भुअर ने पूछा, "क्या हुआ है, कुछ बात है तो बताओ हमें भी... कंपनी में कुछ हुआ है या घर में कुछ हो गया है, बोल... बोल ना भाई।"
रघु ने कहा, "कुछ नहीं हुआ है भाई... चलो रूम पर बताता हूं..."
बस में बैठने के बाद पूरे रास्ते किसी ने कुछ नहीं बोला। रूम पर पहुंचकर मुंह हाथ धोने के बाद तीनों बैठ गए। कल्लू ने कहा, "क्या हुआ है, कुछ बताओगे...हमें भी। क्यों उदास हो बताओगे भी कि हमें भी टेंशन में रखोगे... बताओ क्या हुआ है...।"
रघु ने बताया, "भाई, कंपनी से निकलने के बाद टेम्पो में बैठा था, तभी घर से फोन आ गया... सरदार जी जो टेम्पो चलाते थे, उन्होंने भी सुना... बात खत्म होते ही छठ के शारदा सिन्हा जी का गीत बजा दिया... छठ गीत सुनकर रोना आ गया, आंखें डबडबा गईं... सरदार जी ने कहा, 'छठ नजदीक है, घर जाने की छुट्टी कब लोगे हो बिहारी बाबू... मैं भी पटना साहिब का ही हूं...'
टेम्पो के सीसे में चेहरा का भाव देखकर उन्होंने हमसे पूछ लिया, 'बहुत जल्द जाएंगे सरदार जी...'
यह कहकर टेम्पो छोड़ दिया और घर जाने की बात छठ जैसे पर्व में सुनकर मन और दुःखी हो गया लगा अब जितना जल्द छठ पर घर पहुँचे, बिहारी है न भाई। आज छुट्टी का आवेदन ऑफिस में दिया भी है, देखो क्या होता है। छुट्टी मिलेगा तो छठ में जाऊंगा भाई... लगभग 10 महीने हो गए हैं घर से आए हुए ...।"
यह सुनकर भुअर ने भी उदासी भरे आवाज में कहा, "मुझे भी लगभग साल भर हो गया है घर गए हुए। कभी-कभी सोचता हूं कि अगर बिहार में ही रोजगार होता तो मुझे दिल्ली एनसीआर में नहीं आना पड़ता... भले कम पैसे मिलते, लेकिन पर्व में घर पहुंच जाता आसानी से...।"
कल्लू ने भी अपने आँशुओं को चेहरे से हटाते हुए कहा, "मैं भी अगली छठ में नहीं गया था घर... क्या करें भाई, उत्तर प्रदेश और बिहार के एमपी, एमएलए सोते रहते हैं... अपने से मतलब है उन लोगों को... और जनता भी जातिवाद से ऊपर उठकर रोजगार के लिए वोट करे तो सरकार को भी समझ आए... लेकिन क्या करें, सोचने से क्या होता है, जब तक जनता जागेगी नहीं, तब तक पलायन जारी रहेगा भाई।"
रघु ने लम्बा सांस लेते हुए कहा, "अबकी छुट्टी मिले या न मिले, मैं छठ में घर जाऊंगा...तो जाऊंगा... बताओ, पूरा बिहार जो घर दिवाली में विभिन्न लाइट एवं फूलों से सजाता है, छठ के बाद ही उतारता है... उसकी खुशी... माँ के हाथ का छठ में बना ठेकुआ प्रसाद...जिसका कोई जवाब ही नहीँ, सब साथी, परिवार के सदस्यगण की उपस्थिति... और सबसे मिलने की खुशी... और साथ में मिलकर लिट्टी चोखा बनाना... छठ गीत से गुलजार पूरा बिहार... यह सब सोचकर इतना याद आया है कि अब पक्का घर छठ में पहुंचूंगा चाहे कुछ भी हो... तब जाकर दिल को शुकुन मिलेगा भाई...।"
तीनों दोस्त एक ही स्वर में बोले, "छठ जैसे महापर्व में घर किसी भी हाल में पहुंचेंगे... बोलो जय छठी मईया..."
यह कहकर हंसते हुए घर पहुंचने की तैयारी में तीनों दोस्त लग गए...
- राघवेंद्र प्रकाश 'रघु' / बक्सर, बिहार


No comments:
Post a Comment