साहित्य चक्र

20 February 2021

परिवर्तन

                                      

प्राथमिकविद्यालय दुनार पुर की दशा बिल्कुल खराब थी। इसमें एक ही अध्यापक हरीश  की तैनाती थी।नामांकन 93था।इतने सारे बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ  विद्यालय सम्बन्धी लिखा पढ़ी भी  उनको  ही करनी पड़ती थी । हम यह कह सकतें है कि वे केवल बच्चों को घेरने का कार्य करते थे।  कई बार तो विद्यालय बन्द होने की कगार पर आ जाता था।भला हो विद्यालय की रसोइयों का। पढ़ी लिखी होने के कारण हरीश की मदद कर दिया करतीं थीं।

कई बार उच्चाधिकारियों को सूचना देने के बावजूद भी कोई अध्यापक उनके विद्यालय में नही आ पाया था। तभी अखवारों के माध्यम से सूचना मिली कि 55000 सहायक अध्यापकों की भर्ती हो रही है और आन लाइन काउन्सलिंग के माध्यम से विद्यालय आवंटित होंगे। हरीश की आंखों में चमक आ गयी। सोचने लगे कि निश्चित ही अब उनके विद्यालय में अब कोई न कोई अध्यापक आ जायेगा। 

55000 भर्ती  पूरी होने मे 6माह लग गए। कहते  है न इंतजार का फल मीठा होता है।उनके विद्यालय में एक मैडम की तैनाती की सूचना लिस्ट के माध्यम से उन्हें  मिल चुकी थी।

सूची जारी होने के ठीक 3 दिन बाद एक कार विद्यालय में आकर रुकी हरीश घबरा गए क्योंकि  खंड विकास अधिकारी भी महिला थी ।अब हरीश के हाथ पांव फूल गए क्योंकि अभी मध्यावकाश भी नहीं हुआ था फिर भी बच्चे मैदान में खेल रहे थे। कार का दरवाजा खुला तो देखा एक नव युवती कार से निकल रही है।

विद्यालय में आकर बोली, "सर जी नमस्ते,मेरा नाम शालिनी है मेरा चयन आपके विद्यालय में सहायक अध्यापिका पद पर हुआ है । मैं आज जॉइन करने आयी हूँ।" हरीश बोले-"आपका विद्यालय परिवार स्वागत करता है। इस विद्यालय परिवार को आपकी बहुत जरूरत थी।आप अब आ गई है तो हम आप मिलकर विद्यालय की दशा बदल देगें।"

हरीश ने  तुरंत मैडम को जॉइन कराया ।मिठाई बांटी गई। कार को देखकर  कई लोग स्कूल में जमा हो चुके थे। अब एक सभा का रूप बन चुका था गांव वालों ने  पुष्प भेंट कर मैडम का स्वागत किया । प्रधान जी भी भीड़ देखकर आ चुके थे। हरीश बोले-"देखिये अब हमारे स्कूल में दो अध्यापक तैनात हो  चुके है ।सारा काम अब समय से होगा ।बच्चो की पढ़ाई भी होगी और कागजी लिख पढ़ी भी होगी ।अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी मैं लेता हूं। बस आप बच्चों को  नियमित रूप से स्कूल भेजिए।"
प्रधान जी बोले-"सर जी की बात बिल्कुल सही है सभी लोग बच्चों को भेजें।" सभी गाँव वालों ने अपने बच्चों को  स्कूल भेजने का  वायदा किया।मीटिंग यहीं पर समाप्त हो गई।

मीटिंग में किये गए वायदे से मैडम असहज हो गई। बोली-,''देखिये सर आपका स्कूल मेरे शहर से 60 किलोमीटर दूर है।मैं प्रतिदिन इतने किलोमीटर की यात्रा नहीं कर पाऊँगी।" हरीश बोले-"कोई बात नहीं पास वाले कस्बे में आपको कमरा दिला देते है ।वहीं से अप डाउन करें। "नही  मैं ऐसा नही कर सकती। देखिये मेरे मौसा बगल वाले जनपद में सीडीओ के पद पर है। कहो तो मैं आपकी बात करा दूं"

हरीश बोले-"तो क्या आप प्रतिदिन स्कूल  नहीं आयेगीं?"
"नही ऐसा नही है मैं  स्कूल आऊँगी पर हफ्ते में सिर्फ एक बार ।उस दिन आप ना आइयेगा।आप को भी हफ्ते में एक दिन आराम मिल जायेगा।"मैडम बोली हरीश के चेहरे पर निराशा आ गयी थी-"तो हम ने गांव वालों से जो वायदा किया है उसका क्या होगा?" मैडम बोली'-"यह वायदा मैने नही किया था आपने किया था   आप ही जाने ।"यह कह कर मैडम कार में बैठ कर फुर्र हो गई।

अगले दिन गांव वाले इंतजार करते रहे लेकिन मैडम नही आईं हरीश ने किसी तरह बहाना बनाकर कहा"अभी अभी मैडम का फोन आया था वो बीमार हो गई है ठीक होने पर स्कूल आयेगीं।"

परंतु यह बहाना कब तक काम करेगा । एक न एक दिन  गांव वालों को पता चल ही जायेगा।स्कूल फिर वही पुराने ढर्रे पर आ गया था। बच्चे तो बस खेलने और खाना खाने ही आते और मध्यावकाश में ही घर की ओर खिसकना  चालू कर देते । हफ्ते के चार दिन बीत चुके थे आज पांचवां दिन था । अचानक वही कार विद्यालय की ओर आती हुई दिखाई दी  ।कार विद्यालय के सामने आकर रुकी तो देखा मैडम एक  अधेड़  उम्र के व्यक्ति के साथ चलीं आ रहीं है।

हरीश- 'आपको तो कल आना था ।आप ही ने तो कहा था कि आपके मौसा जी बगल वाले जिले में सीडीओ है आप उनकी छत्र छाया में हैं।आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन ही विद्यालय आयेगीं।'

तभी उनके साथ आये हुए व्यक्ति ने अपने आप को मैडम का पिता बताया और बोले "हम आपसे बहुत शर्मिंदा है ।मेरी बेटी संबंधों का गलत फायदा उठाना चाहती थी। एक तो नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है हमे पूर्ण ईमानदारी से नौकरी करना चाहिए। इन गरीब बच्चों को हम से ही उम्मीदें है। ये ना तो किसी बड़े स्कूल में पढ़ सकते है। और न ही किसी प्रकार की ट्यूशन लगा सकते है। अगर हम इनके साथ न्याय नहीं करेंगे तो ऊपर वाला सब देख रहा है। उसके न्याय में देर है परंतु अंधेर नहीं।"

  हरीश-"बिल्कुल सही कहा आपने ।"
मैडम के पिता बोले-"बेटी अगर तुम इस प्राइमरी की नौकरी से खुश नहीं हो तो त्याग पत्र दे दो ।परंतु ये ना भूलो कि इन बच्चों को पढ़ाने में जो आनंद और संतोष आएगा वो किसी भी नौकरी में नही आएगा।'"

मैडम बोली"पिता  जी और सर जी मुझे माफ़ कर दें। मेरी आँखें अब खुल गयी है । अब मैं  और सर जी मिल कर विद्यालय को चमका देगें। फिर क्या था दोनों लोगों ने जी तोड़ कर मेहनत की अब दुनार पुर का स्कूल अच्छे स्कूल में गिना जाता है।


                                                                        डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव


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