साहित्य चक्र

11 February 2021

"मिट्टी का इंसान"


मानसून के देश में 
खेतों के देश में 
बैठी है वह नीचे सिर झुकाए 
सूने हाथों में लिए रोटियां 
जो उगाई थी मिलकर 
नंगे पैर खेत में 
रोटियों पर टपकता है 
उसकी सूनी आंखो का पानी 
और टपकता है वह लहू 
जो लड़ा था मिट्टी के दुश्मनों से 
आज वह निस्तेज और बेजान 
लटका है पेड़ की शाख से 
झूल रहे हैं वह हाथ जो 
हल से धरती के सीने पर 
लिखते थे इबारत कोई 
झूल रहे हैं वह पैर जो 
घुटनों तक डूबे थे पानी में 
सुन्न सी हाड़ कपाती ठंड में 
ऊपर उठाकर कोरी आंखें 
पूछती है उस रस्सी में 
झूलते मिट्टी के इंसान की गर्दन से 
अब कब ले चलोगे जी! उस 
वैशाखी के मेले वाले झूले पर 
जहां से यह दो पैर वाले सियार 
दिखाई देते हैं रेंगते जैसे कीड़े मकोड़े !

                                               रश्मि चौधरी


No comments:

Post a Comment