मन के उन्माद की
उग्र होती आंधी।
जो संबंध मांस और नाखून के थे
वो रिश्तों से कट चुके हैं।
मेरा कलेजा धक्क से रह गया
कभी देखा है?
प्रश्नों का प्रश्न बनकर सामने आना-जाना
मेरी ज़मीन पर संवेदना खत्म हो चुकीं थी।
यह मेरे बोल नहीं
ज़हर फ़ैलाने वालों ने तो ज़हर फ़ैला दिया
आदमी ज़हर खा ले तो इलाज़ करना चाहिएं
या उसे वही दफ़न कर देना चाहिए।
अपनी मौत को रोकने के
लिए सभी प्रयास करते हैं
पर हालात बेकाबू रहते हैं।
अपने-अपने सिद्धांत है महाराज
कोई ना समझे तो आगे निकल जाएं
भला क्यों उस अपमान को बर्दाश्त करें।
महाराज
आप इसे जीवन के
मूल मंत्र में प्रेम कहते हैं।
किसी तेज गतिवाली आंधी की
तरह वह क्रमशः उग्र होती जाती है।
जब तक कि सबकुछ
तहस-नहस नहीं कर देती।
ख़ैर
महाराज
समझदार को इशारा
ही काफ़ी होता हैं।
दीक्षा कार्तिकेय
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