साहित्य चक्र

11 February 2021

अरकान

ग़ज़ल

ग़म मिटाने की  दवा  सुनते  हैं  मयख़ाने में है। 
आओ चल कर देख लें क्या चीज़ पैमाने में है।।

हुस्न की शम्मा का चक्कर सब लगाते हैं मगर।
जान दे देने  कि  हिम्मत  सिर्फ  परवाने  में है।।

मय कदे में कौन सुनता है किसी की बात को।
हर कोई मशग़ूल  इक दूजे को समझाने में है।।

चार दिन जीना  मगर  जीना  जहाँ में शान से।
सौ बरस ज़िल्लत से जीना अच्छा मर जाने में है।।

एक मयकश से जो पूँछा किस लिए पीते हो तुम।
हंस के बोला पी के देखो दम तो अजमाने में है।।

हम तो बरसों से खड़े बस इक झलक को ऐ सनम।
आपको इतना तकल्लुफ़  बाम पर आने में है।।

एक दिन साक़ी की महफ़िल में गया जब ये निज़ाम।
पी गया बोतल सभी क्या  मौज पी जाने में है।।

                                                      निज़ाम-फतेहपुरी


No comments:

Post a Comment