पीछा करते हम तितली का
खेतों और खलिहानों में।
पीछा करते हम तितली का
मैदानों उद्यानों में।
उसे पकड़ने की कोशिश में
कदम उठाते चुस्ती से।
लेकिन अब तक पकड़ न पाए
उड़ जाती वह फुर्ती से।
पकड़ी तितली इक दिन हमने
लिया हाथ में ठीक से।
अपने पंख हिलाती कैसे
देखा यह नजदीक से।
लेकिन वह छोटी सी तितली
लगती थी घबराई सी।
छोड़ दिया था जल्दी उसको
बात समझ में आई थी।
अब तितली को न पकड़ेंगे
बंद करेंगे न अंदर।
आसमान में उड़ती तितली
लगती है कितनी सुंदर।
कुसुम
अग्रवाल
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