लिखा तो बहुत सब पर
अब बस तुमको लिखना चाहती हूँ
जो कभी खत्म ना हो
ऐसी अब एक कहानी चाहती हूँ ।
कुछ मीठे से एहसास
तेरा वो साथ
तेरी वो नजरें करम चाहती हूँ
खुदा से अब ये रज़ा चाहती हूँ ।
तुझसे सूरज सा ताप
चाँद सी शीतलता चाहती हूँ
तुझसे फूलों में गुलाब
कुछ कांटो सा हिजाब चाहती हूँ ।
कुछ मीठी सी बातों का हास
कुछ व्यंगों सा परिहास चाहती हूँ
बन जाऊं कुछ पलों को मैं भी बच्ची
बचपन का वो अनुराग चाहती हूँ ।
थोड़ा रूठूँ , थोड़ा रो लूँ
थोड़ा सा हँसता हुआ मनुहार चाहती हूँ
थोड़े शिकवे कुछ शिकायते
कुछ पक्के से वायदे चाहती हूँ ।
नींद से भरी इन आँखों मे
तेरे ही अब सपने चाहती हूँ
मिला के तेरे कदम से कदम
बस तेरे साथ चलना चाहती हूँ ।
कभी जो थक जाऊं हार कर
हाथो में अपने तेरा हाथ चाहती हूँ
पल दो पल की है जिंदगी
मौत भी तेरे साथ चाहती हूँ ।
"मोना"
Thank u so much for publish my poem 🙏
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