साहित्य चक्र

11 February 2021

लिखना चाहती हूँ


लिखा तो बहुत सब पर
अब बस तुमको लिखना चाहती हूँ
जो कभी खत्म ना हो
ऐसी अब एक कहानी चाहती हूँ ।

कुछ मीठे से एहसास
तेरा वो साथ
तेरी वो नजरें करम चाहती हूँ
खुदा से अब ये रज़ा चाहती हूँ ।

तुझसे सूरज सा ताप
चाँद सी शीतलता चाहती हूँ
तुझसे फूलों में गुलाब
कुछ कांटो सा हिजाब चाहती हूँ ।

कुछ मीठी सी बातों का हास
कुछ व्यंगों सा परिहास चाहती हूँ
बन जाऊं कुछ पलों को मैं भी बच्ची
बचपन का वो अनुराग चाहती हूँ ।

थोड़ा रूठूँ , थोड़ा रो लूँ
थोड़ा सा हँसता हुआ मनुहार चाहती हूँ
थोड़े शिकवे कुछ शिकायते
कुछ पक्के से वायदे चाहती हूँ ।

नींद से भरी इन आँखों मे
तेरे ही अब सपने चाहती हूँ
मिला के तेरे कदम से कदम
बस तेरे साथ चलना चाहती हूँ ।

कभी जो थक जाऊं हार कर
हाथो में अपने तेरा हाथ चाहती हूँ
पल दो पल की है जिंदगी
मौत भी तेरे साथ चाहती हूँ ।

                                      "मोना"


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