साहित्य चक्र

20 February 2021

बसंत... तुम जब



बसंत तुम जब आते हो ।
प्रकृति में नव -उमंग,
 उन्माद भर जाते हो। 

बसंत तुम जब आते हो
हवाएं चलती हैं सुगंध ले कर। 
जीवन में खुशबू बिखराते हो। 

बसंत तुम जब आते हो।
 कितने नए एहसास जागते हैं। 

सृजन की प्रेरणा दे ।
नित -नूतन संसार सजाते हो।

हर तरफ फूलों से बगियाँ तुम सजाते हो।। 
कहीं पीले -कहीं नारंगी।
लाल गुलाब महकाते हो।

बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो।

नदिया इठला कर चलती है। 
दिनों में मस्ती छा जाती है।

 मीठी -मीठी धूप में ,
शीतल चांदनी- सी रात झिलमिलाती है ।
आसमां में  चहकते हैं पक्षी। 
 कोयल के साथ मधुर गीत गाते हो।

 बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो। 

नई आस- नई प्यास 
नए विचार -नए आधार। 
बन कर रच जाते हो। 

बसंत तुम आते हो। 
नई तरंग से जीवन को,
 तरंगित कर जाते हो।। 


                                                  प्रीति शर्मा "असीम"


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