शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया।
दुश्मन भी होलि खेलने को यार आ गया।।
परदेसी सारे आ गए परदेस से यहाँ।
अपना भी मुझको रंगने मेरे द्वार आ गया।।
रंग्गे गुलाल उड़ रहा था चारों ओर से।
नफ़रत मिटा के देखा तो बस प्यार आ गया।।
ठंडाइ भांग की मिलि हमनें जो पी लिया।
बैठा था घर में चैन से बाज़ार आ गया।।
मजनू पड़े हैं पीछे मुझे रंगने के लिए।
धोखा हुआ पहन के जो सलवार आ गया।।
सब लोग मिल रहे गले इक दूजे से यहाँ।
लगता है मुरली वाले के दरबार आ गया।।
खेलो निज़ाम रंग भुला कर के सारे ग़म।
सबको गले लगाने ये दिलदार आ गया।।
निज़ाम-फतेहपुरी
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