साहित्य चक्र

20 February 2021

बचपन की परीक्षा



बचपन की परीक्षा के दिनों में
सबसे आसान लगते थे।
"एक अंक के प्रशन"।
"खाली स्थान भरो"।
"सही या गलत चुनो"।
"एक शब्द मे उत्तर दो"।

पर जिंदगी की परीक्षा में यही प्रश्न
अत्यंत कठिन महसूस होते है!

नही जान पाती,किसी अपने द्वारा
छोडे गए खाली स्थान को, कैसे भरा जाता है?

इस मिश्रित् दुनिया मे
किसी को पूर्ण सही या पूर्ण गलत,
कैसे कहा जा सकता है?

भावो को मात्र,एक शब्द मे स्पष्ट करना
अब असंभव सा लगता है!

अब अच्छे लगने लगे है ,वो निबंधात्मक प्रश्न
जिनमे मन के सारे भाव उडेल देते है,
बिना शब्द सीमा के घेरे मे बँधे!

पर पहले की तरह नही मालूम
ये उत्तर पढ़े समझे भी जाते है या नही!

                                            सारिका "जागृति"


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