कितना विरोधाभासी है मेरा प्यार
कभी कभी मैं समझ नहीं पाती
मेरे दिल में तुम हो
या कोई और भी है
रिक्तता को कोई तो भरेगा
पर वह होगा कौन?
कभी किसी की बातों से
पिघल जाती हूं
तो किसी के रूप को
देख फिसल जाती हूं
तो किसी के सादगी
पर मचल जाती हूं।
फिर क्षणवादी सुख
जीवन का दुःख बन जाता
जिसको को याद करने का
फिर जी ना चाहता है।
तुम्हारे उचित विकल्प की
तलाश में हूं और तुम ही
मेरे अंतिम विकल्प बनते हो
फिर विरोधाभासी क्यों है?
शायद अंतर्मन ही मान बैठा है
तुम्हारी वापसी कभी न होगी।
हां विरोधाभासी है मेरा प्यार
इसलिए इतना है तुमसे प्यार
जो पूर्ण होने का नाम ना लेता
सदा अपूर्ण ही बना रहता है।
कुमारी अर्चना
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