28 April 2019
27 April 2019
पाँच बरस में फेर आयो...
फेर आयो चुनाव
पाँच बरस में फेर आयो ,लोकसभा चुनाव।
घर घर चर्चा चाल री, आयो फेर ,चुनाव।।
भांत भांत का सगळा नेता, वोट माँगबा चाल्या।
कुर्सी की खींचातानी में आव देखे न ताव।।
अरे भाया फेर आयो चुनाव.........
,दोन्यूं हाथ जोड़ लयाँ जाणे, वोटर दिखे भगवान।
झूँठा वादा कर जनता सूं, देखो बढ़ रयाँ भाव।।
अरे भाया फेर आयो चुनाव....
कोई रोड शो में टाटा कर रया, कोई करया बाय बाय।
चुनावी मौसम में नेता लेरया कतनो चाव।।
अरे भाया फेर आयो चुनाव...
लू लपट में चैन कोनी, मेहनत करे दिन रात।
लोकसभा में जीत कर खेवे मन का घाव।।
अरे भाया फेर आयो चुनाव........
उनतीस तारीख के दिन भाया,आयो लोकतन्त्र त्योहार।
एक मत एक मत से जीतेगो केंडिडेट चुनाव।।
अरे भाया फेर आयो चुनाव....
कवि राजेश पुरोहित
आधार के बदले...
न्याय
.......
गरीबों से वोट
अमीरों को टिकट
कहां का न्याय है
बता दीजिये....
चुनाव के समय
गरीबों घर खाना
फिर मुंह न दिखाना
कहां का न्याय है
बता दीजिए....
आधार के बदले
पासपोर्ट क्यों न बांटे
यह अधूरी पहचान
कहां का न्याय है
बता दीजिए....
हर नेता करोड़पति
न डिग्री न व्यवसाय
चुप्पी साधे है सरकार
कहां का न्याय है
बता दीजिए....
बस रूपयों का लालच
ना सुरक्षा-रोजगार की बात
सवाल करने वाला गद्दार
कहां का न्याय है
बता दीजिए....
हद भी हद से पार
भारत में श्रीराम पर सवाल
राममंदिर अयोध्या में नहीं
तो क्या रावलपिंडी में बनेगा
ये कहां का न्याय है
बता दीजिये...
जीवन में कुकर्मी सोच
जीवन के संग धोखा
न्यायपालिका पर भी
बढ़ता राजनैतिक दवाब
कहां का न्याय है
बता दीजिए.....
दुनिया में दहशत फैली
आतंक को किसने पोसा
ये कुछ लोगों की चुप्पी
कहां का न्याय है
बता दीजिए......
आकांक्षा सक्सेना
।।प्रेम की भाषा।।
प्रेम की भाषा जिन्हें आई समझ में
जी रहे हैं लोग वो उस्ताद बनक
द्वेष के सागर में अपना पैर करके
दिल दुखाएँ क्यूँ किसी का बैर करके
बाँटने खातिर किसी का दर्द प्यारे
हम समंदर पार कर लें तैर करके
मन हमारा हो किसी दर्पण के जैसा
शब्द गूँजे व्योम में जनवाद बनकर
थक गईं हैं बारिशें धरती धो-धो के
हाल कैसी कर ली है शबनम रो-रो के
इस धरा पर प्रेम की भाषा बदल दी
नफ़रतों के बीज हमने हीं बो-बो के
आइये मिलजुल के फिर रिश्ते सुधारें
दोस्तों से प्रेम का संवाद बनकर
.
चार बातें काम की और ढंग की हो
और वो भी दोस्तों के संग की हो
याद भी रक्खे कोई क्यूँ उस घड़ी को
जिस घड़ी ने जिंदगी को तंग की हो
थामकर बाँहें चलें एक दूसरे की
जीत लेंगे जंग हम फ़ौलाद बनकर
✍️सत्येन्द्र गोविन्द
राजनीति का चूर्ण : मतदान महत्वपूर्ण
नए भारत का नया सवेरा ,
नई कहानी लिखेगा |
लोकतंत्र का महापर्व ये,
अपनी जुबानी लिखेगा ||
चहुँ ओर जब शोर मचेगा,
होगा खूब मतदान |
देश की जनता फिर पाएगी,
अपना खोया सम्मान ||
कोई वंचित ना रहना भाई,
अपने मताधिकार से |
नई सरकार बनाना मिल-जुल ,
लोकतांत्रिक किरदार से ||
अपनी आवाज़ उठाने का,
अवसर यही एक मिलता है |
वरना इन नेताओं का कहाँ ,
आसानी से चेहरा खिलता है ||
नोट के बदले वोट का पाठ,
कहाँ पढ़ाया जाता है |
हिंसा खुद फैलाते हैं,
और जनता को लडा़या जाता है ||
"शेलु" तो इसे माने केवल,
राजनीति का चूर्ण |
किंतु ये धर्म हमारा है,
करो मतदान महत्वपूर्ण ||
लोकतंत्र के इस महापर्व में अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें-
सुनील पोरवाल "शेलु"
इश्क़ करना नही जानते...
अगर तुम मचलना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
ये गिर कर संभलने की बाते है झूठी,
कभी जान अटकी कभी साँस टूटी,
अगर दर्द सहना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
सारे गमों को समेट साथ लेकर के चलना,
कभी खुद से बिछड़ना कभी उनसे मिलना,
अगर जुड़-छूट जुड़ना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
इश्क़-ए-सफ़र की नही कोई मंजिल,
है मिलता कभी टूटता है कभी दिल,
अगर निगाहों से छलना नही जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
एकतरफा मोहब्बत की राहें है मुश्किल,
कभी उनसे खोकर उनसे ही जाते है मिल,
अगर मिलना-बिछड़ना नही जानतें हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
इश्क़ की तपन में तपना पड़ेगा,
हाथ में ले मशालें चलना पड़ेगा,
अगर बुझना और जलना नहीं जानते हो,
तो फिर इश्क़ करना नही जानते हो,
-©शिवांकित तिवारी "शिवा"
।। पहन कर श्वेत वस्त्र ।।
( गौतमबुद्ध )
रात अँधेरे
छोड़कर
राज-पाट सुख अपार
पहन कर श्वेत वस्त्र
नींद से बेसुध
पत्नी,पुत्र अबोध को
क्षण,भर भी न देखा
मोहमाया से नाता तोड़ा
निकल पड़े नंगे पाँव
महलों के राजकुमार
जानने जीवन का सार
भूखे,प्यासे घूमे
जंगल ,गाँव
नगर मैदान
कर के वट के नीचे तप
बोध को पाया
रोग,वृद्धत्व,मौत
ये जीवन के अध्याय
कर लो मानव
तुम स्वीकार
मृत्यु है जन्म के साथ
मध्यम मार्ग अपनाया
अष्टांग मार्ग का
पाठ पढ़ाया
विश्व में बौद्ध धर्म फैलाया
सिद्धार्थ ने भगवान
गौतम बुद्ध बनकर
"बोधिसत्व" पाया
डॉ रचना सिंह "रश्मि"
राम जन्म
मुक्त कविता
धन्य हुई अवध पूरी,जन्मे राजा राम।
राम जन्म से बिगड़े हुए, बने सभी काम।।
राम जन्म की बधाई, मिल रही चारो ओर से।
धन्य हुई कौशल्या माई ,दे जन्म श्री राम को।
विस्मित हुई मात जब दर्शन दिए विराट रूप केे।
कर जोड़ किया विनय ,ले लो अवतार पुनः निज स्वरूप में।
आतंक से भयभीत सभी मुनि वशिष्ट के प्राँगण में।
पहुँचे कर जोर आज लेने श्री राम को।
राजा जनक के उत्सव में हुई राजाओ की भीड़।
रावण से ले कर सभी प्रतापी धीर।
उठा सके ना धनुष को कोई भी एक क्षण।
प्रत्यंचा चढ़ा कर जीता सीते का साथ।
हाय विडंबना की राज तिलक दिवस को मिला चौदह वर्ष वनवास।
वर्ष बिताये चौदह ,किया असुर का नाश।
रावण को मार कर हल्का किया भूमि का भार।।
लौटे सिय के साथ रघुनंदन खत्म हुआ जब वनवास।
अवधवासियों को प्रभु मिलन की आस।।
संध्या चतुर्वेदी
खेत में तन को जला रही
जलती दोपहर में
एक मां अपनी बच्चा को
पीठ पीछे बाधंकर
खेत में तन को जला रही है,
मौसम सख्ती दिखा रही है
वो पसीना किसी खुशबू से
कम न थी
हां बाप था जो
मदिरा के भट चढ़कर
बहुत दूर चला गया,
तू लावारिश नही
मैं जिदां हूं ना
मानो हदय की व्यथा सुना रही है,
जल रहे मन में सूखे रोटी
की आस है,
गरीबी की आहट में सब छिन गया
सिर्फ एक प्यास है,
भभक कर मन रोने को
व्याकुल हो रहा है
मगर पगार कट जायेगा
रोने को बाद में भी रो लिये
मगर हदय का दर्द
कहां छिपेगा।
अभिषेक राज शर्मा
डेमक्रेसी
डेमोक्रेसी क्या है
प्रियतम के वादों की तरह होती है,
प्रियतम के वादे तो पूरे हो जाते है,
पर डेमोक्रेसी के वादे पूरे होते नहीं।
डेमोक्रेसी भाईचारे की तरह होती है,
जो होता तो है पर निभाया नहीं जाता,
डेमोक्रेसी का मतलब आज़ादी होता है।
आज़ादी रामनाम की,
आज़ादी हर काम की,
आज़ादी लूटने की,
आज़ादी सबको ठगने की,
आज़ादी समानता की,
आज़ादी अमीरो को अमीर बनाने की,
आज़ादी गरीबो को गरीब बनाने की,
डेमोक्रेसी का मतलब समानता भी होता है।
सामान विचारो से होता है,
प्रियतम के विचार तो मिल सकते है।
डेमोक्रेसी में कभी नहीं मिलते,
डेमोक्रेसी घर से दफ्तर तक होती है।
लोग एक दूसरे पर चिल्लाते है,
डेमोक्रेसी बहुत तड़पाती है,
बहुत इंतज़ार कराती है, पर
रियतम तो आ जाता है,
डेमोक्रेसी कभी नहीं आती।
।। गरिमा ।।
साहब! ये मौसम चुनावी है
राजनीति का नशा
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तुम किसे सुनाओगे
और कौन तुम्हारी सुनेगा ?
साहब! ये मौसम चुनावी है
तरह-तरह के मुखौटे पहनकर
अजीबो-गरीब करतब दिखाये जायेंगे
झाल-मंजीरे, ढोल-नगाडों से
जनता दरबार लगाये जायेंगे
भिन्न-भिन्न व्यंजन मुफ्त में
गरीबों को खिलाये जायेंगे
कुछ इस तरह मेरे देश के वोटर छले जायेंगे |
भोली-भाली सूरत बनाकर
बड़े-बड़े वादे किये जायेंगे
ऊंचे-ऊंचे मंचों से रंग-बिरंगे लॉलीपॉप बांटें जायेंगे
एक लुटेरा जायेगा तो दूसरा आयेगा
ये देश का दुर्भाग्य है कि
जाति-धर्म के नाम पर जनता को आपस में लड़ाया जायेगा
कुछ इस तरह राजनीति का नशा चढ़ाया जायेगा
जनता को ठगा जायेगा... |
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
12 April 2019
माता रानी शेर पे सवार हो
माता रानी ओ ओ , माता रानी ओ ओ ll
माता रानी शेर पे सवार होकर आई है, ----2
हाथ में भाला, है तलवार भी लाई हैं।।
माता रानी ओ ओ , माता रानी ओ ओ ll
माता रानी शेर पे सवार होकर आई है, ----2
भक्तों के कष्ट को मिटाना माता ll
प्यार की वर्षा बरसाना माता ll
सोलह श्रंगार कर माता रानी आई है ll
माता रानी ओ ओ , माता रानी ओ ओ ll
माता रानी शेर पे सवार होकर आई है, ----2
तेरे दर पे आये है , बहुत ही सवाली ll
तेरे दर से कोई भी नही जाता खाली ll
माता रानी भक्तों के दिल पर छाई है l
माता रानी ओ ओ , माता रानी ओ ओ ll
माता रानी शेर पे सवार होकर आई है, ----2
हर जगह मंदिरों में दीप को जलाओ ll
खुशियां मनाओ माँ के भजन गाओ ll
माता रानी सँग में शेर को भी लाई है ll
माता रानी ओ ओ , माता रानी ओ ओ ll
माता रानी शेर पे सवार होकर आई है, ----2
जीवन के आपा-धापी में
।।जीवन क्या है।।
जीवन के आपाधापी में,
यह सोच न पाया कि जीवन क्या है?
क्या बुरा किया क्या भला किया,
कैसे बीत गए पल सारे।
हर तरफ अँधेरा है भागमभाग है,
सोच नहीं पा रहा है किस तरफ जाऊ।
मैं जहा खड़ा था वही खड़ा हूँ ,
मैं समझ न पाया की जीवन का सच क्या है।
क्यों भाग रहा हू मैं?
किससे भाग रहा हूँ ?
क्या यही है जीवन,
जिसमे भाग दौड़ लगी रहती है।
जिसको सोना समझा वो मिट्टी निकला,
जिसको पीतल समझा वो हीरा निकला।
जीवन क्या है पानी का बुलबुला,
मुझसे पूछा जाता तो में क्या बोलूँ,
कैसे बीत गए दिन सारे,
अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूँ।
सोच रहा हूँ क्या खोया क्या पाया मैंने
कैसे बीता जीवन मेरा,
यह सोचता हूँ ।
फिर भी जीवन क्या है,
यह समझ नहीं पाता हूँ।।
।।गरिमा।।
समंदर सा हृदय
गीत
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
छीन रहा है महक देखिये तो मधुप
खिलते हुए कोई प्रीत के गुलाब से
विश्वास का एक घर बनाया हमने
प्रेम की प्रतिमा को स्थापित करूँ
शाप से जो अधुरा रहा गया प्रेम
बहाके गंगा उसे अनुशापित करूँ
भागीरथी बन वसुधा पर प्राणप्रिये
पावन गंगा को भी लाऊँ तेरे लिये
किंतु रंज यही अब हृदय को हुआ
ख्वाब भी छीन लिया अब ख्वाब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
प्रतिच्छबि न्यारी है रिश्मी रूप की
नवल अनुराग से प्रीत को निहारूँ
यादों का मधूप प्रीत के सोमरस को
चुराये नैन से तब मीत तुझे पुकारूँ
दर्पण सी प्रतिपल तेरी अनुपम छवि
प्रतिबिंब बन दिखती है कण कण में
जीवन पथ पर मुझे यही अहसास है
सिधुं का प्रेम पाती नदी समर्पण में
किंतु आशाओं की इन बहारों में भी
बच न पाया मैं पहुँच किनारों में भी
सागर के बिन ही डूबी थी मेरी नौका
प्रलय हो गयी बस एक बूंद आब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
अलंकृत छवि प्रेम की बनो तो सही
भाव पुष्प से देवी मैं आरती गाऊँगा
नैन के निर्मल जल से चरण को धोके
आओ तो सही पुष्प पथ पे बिछाऊँगा
हृदय की सेज पर विश्राम करना तुम
धड़कनों का मधुर संगीत सुनना प्रिये
स्वप्न में उपवन में विचरण करो जब
तब हमारे लिये प्रीत पुष्प चुनना प्रिये
थाम के हाथ तुम्हारा राह कट जायेगी
जिंदगी की घड़ी तेरे साथ बट जायेगी
किंतु सिमट गयी निराशाओं में जिंदगी
एक किरण भी न मिली आफताब से
समंदर सा हृदय समझकर जो तेरा
प्रेम की धारा बहा दी बडे़ चाब से
भानु शर्मा
।।मेरे लव खामोश।।
कैसा होगा वो पल.....
कैसा होगा वो पल ?
ज़ब तू मेरे सामने होगा
क्या मेरे लव खामोश होंगे ?
या तू मेरी बाहो मे होगा
कैसा होगा वो पल....
कैसे मेरी नज़रे देखेंगी तुझे ?
या तू नज़रो मे कैद होगा
क्या मेरे कान सर्फ़ तुझे सुनेंगे ?
या तू बोलता हुआ होगा
कैसा होगा वो पल....
क्या वक़्त थम जायेगा ?
या पल मे गुजरता हुआ होगा
मेरी धड़कने थम जाएगी?
या बी.पी बढ़ा हुआ होगा
कैसा होगा वो पल.....
ख्वाब हज़ार आते है
एक पल सदियों जितना होगा
कैसे एक एक पल गुजारु
तू कब मेरे सामने होगा
कैसा होगा वो पल
ज़ब तू मेरे सामने होगा....
।।ज्योति अग्रवाल।।
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