‘सोच’
सोच हर इंसान की अलग-अलग होती है। जो किसी के
बस में नहीं होती है। बस हर इंसान अपनी सोच के अनुसार चलता तो जरूर है। लेकिन हर
पल उसकी सोच बलती रहती है। सोच ही इंसान को एक बेहतर इंसान की राह पर ले जाती है।
सोच इंसान का आधा परिचय दे देती है। सोच का कर्मों से कोई लेना देना नहीं है। यह
जरूरी नहीं की एक चोर के मस्तिष्क में हर पल चोरी के ख्याल ही आते हो। एक बुद्धहीन
इंसान के मस्तिष्क में भी कभी-कभी अच्छे विचार आ जाते है। क्योंकि हमारा मस्तिष्क
ब्रह्मांड की तरह है। जिसे कोई पकड़ नहीं सकता, जिसे कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए
हमारा मस्तिष्क सदैव आजाद होता है। सोच ही हमारी एक पहचान बनाती है। जिस इंसान की
जैसी सोच वहीं इंसान वैसे ही अपनी परिचय देगा। क्योंकि वह अपनी सोच पर सीमित होगा।
वैसे हमारी सोच सीमित तो नहीं है। लेकिन
हमारी सोचने की शक्ति सीमित है। क्योंकि इंसानी जीवन बहुत ही कठिनमयी है। इंसान
होना बड़ा नहीं है। इंसानी जीवन जीना कठिनमयी है। जिसे जीने के लिए इंसान दिन-रात
मेहनत करता है।
लेखकःदीपक कोहली
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